पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२३२

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%3D ३७३८ ] वर्षावासमें प्रव्रज्या [ १८१ (७) वर्षावासके लिए अयोग्य स्थान १-उस समय भिक्षु वृक्षोंके कोटरमें वर्षावास करते थे। लोग देखकर .. हैरान होते थे- कैसे (यह शाक्य-पुत्रीय श्रमण वृक्षोंके कोटरमें वर्षावास करते हैं) जैसे कि पिशाच !' भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! वृक्षके कोटरमें वर्षावास नहीं करना चाहिये; जो करे उसको दुक्क ट का दोष हो।" 184 २-उस समय भिक्षु वृक्ष-वाटिकामें वर्षावास करते थे। लोग हैरान .. होते थे—(कैसे यह शाक्यपुत्रीय श्रमण वृक्ष-बाटिकामें वर्षावास करते हैं) जैसेकि शिकारी ! भगवान्से यह वात कही। "भिक्षुओ! वृक्ष-वाटिकामें वर्षावास नहीं करना चाहिये । जो करे उसे दुक्क ट का दोप है ।"185 ३-उस समय भिक्षु चौळेमें वर्षावास करते थे । वर्षा आनेपर वृक्षके नीचेकी ओर भी भागते थे; नीमके झुरमुटकी ओर भी भागते थे । भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! चौळेमें वर्षावास नहीं करना चाहिये; जो करे उसे दुक्क ट का दोप हो।" 186 ४--उस समय भिक्षु विना घर-मकान के वर्षावास करते थे और सर्दीसे भी तकलीफ़ पाते थे गर्मीसे भी तकलीफ़ पाते थे । भगवान्मे यह बात कही। "भिक्षुओ ! विना घर-मकानके वर्षावास नहीं करना चाहिये । जो करे उसे दुक्क ट का दोष हो।" 187 ५-उस समय भिक्षु मुर्दो (के रखने) की कुटियोंमें वर्षावास करते थे । लोग हैरान . . होते थे—(कैसे यह शाक्यपुत्रीय श्रमण मुर्दोकी कुटियोंमें वर्षावास करते हैं) जैसेकि मुर्दा जलानेवाले शवदाहक ! भगवान से यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! मुर्दोकी कुटियोंमें वर्षावास नहीं करना चाहिये, जो करे उसे दुक्क ट का दोप हो।" 188 ६-उस समय भिक्षु छप्परोंमें वर्षावास करते थे। लोग हैरान .. होते थे-(०) जैसेकि चरवाहे ! भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! छप्परोंमें वर्षावास नहीं करना चाहियें। जो करे उसे दुक्क ट का दोपहो।" 189 ७-उस समय भिक्षु चाटी (=अनाज रखनेका मिट्टीका वड़ा कुंडा जिसे कहीं-कहीं छों ळ भी वाहते हैं) में वर्षावास करते थे। लोग हैरान . . होते थे • जैसे तीथिक' ! भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! चा टी में वर्गवास नहीं करना चाहिये ० दुक्क ट०।" 190 (८) वर्षावासमें प्रव्रज्या १-उस समय धा व स्ती में संघने प्रतिज्ञा (=कतिका) की थी-'दकेि भीतर प्रव्रज्या नहीं देंगे ।' विमा ला मृगा र मा ता के नातीने भिक्षुओंके पास जाकर प्रद्रज्या माँगी। भिक्षुओंने कहा---'आन्स ! नंपने प्रतिज्ञा की है कि ववि नीवर प्रव्रज्या न देगें । आवुस तब तक प्रतीक्षा करो, उ.द तक कि निक्षु दयान कर लेते हैं। दर्पा ममाप्त होने पर वे प्रवज्या देंगे।' तब भिक्षुओंने दादान करके दिमाला नृमारमाता नातीने कहा-'अब आओ आबुन ! प्रद्रग्या लो।' उसने - एक समयदे. आजीदमा, निम्रन्थ (जैन) आदि साधु-सम्प्रदाय ।