पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२४७

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- ! १९६ ] ३-महावग्ग [ 3710 "यदि भिक्षुओ ! प्रवारणासे पहले वस्तु (=दोप) जान पळे और पीछे व्यक्ति (=अपराधी, दोषी); तो ( दोपका ) बतलाना उचित है । यदि भिक्षुओ ! प्रवारणाके पहले व्यक्ति जान पळे और पीछे वस्तु; तो ( दोपका ) वतलाना उचित है । यदि भिक्षुओ ! प्रवारणाने पहले बस्तु भी जान पळे और व्यक्ति भी और उसका आरोप (उत्कोटन) प्रवारणा कर चुकनेपर कहे, तो ( आरोपीको ) उ त्को ट न क पा चित्ति य होता है।" 855 (७) झगळालुओंसे बचनेका ढंग उस समय कोसल देगके एक आवासमें बहुतसे प्रसिद्ध और संभ्रान्त भिक्षु वर्षावास कर रहे थे । उनके आसपास दूसरे भंडन (=कलह): विवाद, और गोर करनेवाले तथा संबमें झगळा (मुक- दमा) लगानेवाले भिक्षु ( यह सोचकर ) वर्षावास करने गये-'उन भिक्षुओंके वर्षावास कर लेनेपर प्र वा र णा के दिन हम उनकी प्रवाग्णाको स्थगित करेंगे ।' उन भिक्षुओंने सुना कि हमारे पासमें दूसरे० झगळा लगानेवाले भिक्षु (यह सोचकर ) वर्षावास कर रहे हैं-०'कैसे हमें करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें वहुतमे प्रसिद्ध संभ्रान्त भिक्षु वर्षावास करते हों और उनके पासमें० प्रवारणाको स्थगित करेंगे; तो भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, उन भिक्षुओंको दो-तीन चतुर्दशीके उपोसथ करनेकी जिसमें कि वे उन भिक्षुओंसे पहिले ही प्रवारणा कर सकें। यदि भिक्षुओ! वे ० संघमें झगळा लगानेवाले भिक्ष उस आवासमें आते हैं, तो उन आवासमें रहनेवाले भिक्षुओं को जल्दी जल्दी एकत्रित हो प्रवारणा कर लेनी चाहिये, और प्रवारणा करके कहना चाहिये- 'आवुसो ! हमने प्रवारणा कर ली। आयुष्मानोंको जैसा जान पळे वैसा करें ।' भिक्षुओ ! यदि वे ० संघमें झगळा डालने वाले भिक्षु बिना प्रबंध किये उस आवासमें आवें तो आवासमें रहनेवाले भिक्षुओंको आसन बिछाना चाहिये, पैर धोनेका जल, पैर धोनेका पीढ़ा, पैर रगळनेकी कठली रख देनी चाहिये, और अगवानी करके ( उनके ) पात्र, चीवरको ग्रहण करना चाहिये । पानीके लिये पूछना चाहिये और उनको कहकर सीमाके बाहर जाकर प्रवारणा करनी चाहिये । प्रवारणा करके कहना चाहिये—'आवसो ! हमने प्रवारणा कर ली। आयुष्मानोंको जैसा जान पळे वैसा करें। यदि ऐसा हो सके तो ठीक, न हो सके तो एक चतुर समर्थ आश्रम-निवासी भिक्षु दूसरे आश्रम-निवासी भिक्षुओंको सूचित करे—'आवासके-रहनेवाले-आयुष्मानो ! मेरी सुनो, यदि आयुष्मान् उचित समझें तो इस वक्त हम उपोसथ करें, प्रातिमोक्ष-पाठ करें और आगामी अमावस्यामें प्रवारणा करेंगे।' यदि भिक्षुओ ! वे ० संघमें झगळा लगानेवाले भिक्षु ऐसे कहें-'अच्छा हो आवुसो ! कि हम अभी प्रवारणा करें।' तो उन्हें इस प्रकार कहना, चाहिये—'आवुसो ! हमारी प्रवारणामें तुम्हें अधिकार नहीं। हम ( अभी ) प्रवारणा नहीं करेंगे।' यदि भिक्षुओ ० वे संघमें झगळा डालनेवाले भिक्षु उस अमावस्या तक ( भी ) रहें तो एक चतुर समर्थ आश्रमवासी भिक्षुओंको सूचित करे—आवासके रहनेवाले आयुष्मानो ! मेरी सुनो । यदि आयुष्मान् उचित समझें तो इस वक्त हम उपोसथ करें, प्रातिमोक्ष-पाठ करें और आगामी पूर्णिमामें प्रवारणा करेंगे।' यदि भिक्षुओ ! ० वे संघमें झगळा लगानेवाले भिक्षु ऐसा कहें । यदि भिक्षुओ ! ० वे संघमें झगळा लगाने वाले भिक्षु उस पूर्णिमा तक रहें तो भिक्षुओ ! उन सभी भिक्षुओंको आगामी चातुर्मासी कौमुदी (आश्विन) पूर्णिमाको इच्छा न रहनेपर भी प्रवारणा करनी चाहिये । 856 "यदि भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंके प्रवारणा करते समय एक रोगी ( भिक्षु ) दूसरे नीरोगों (=भिक्षु)की प्रवारणाको स्थगित करे तो उससे ऐसा कहना चाहिये—आयुष्मान् ! रोगी हैं और रोगी को भगवान्ने दोपारोपण (=अनुयोग) करनेके लिये अयोग्य कहा है । आवुस ! तब तक प्रतीक्षा करो ! ! !