पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२४६

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४६४१६ ] वस्तु या व्यक्तिको स्थगित करना [ १९५ आ ऐसा कहें-'आवुसो ! इस भिक्षुने जो दोप किया था उसका इसने धर्मानुसार प्रतिकार कर दिया । यदि संघ उचित समझे तो प्र वा र णा करे । 846 ३-"यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षुने प्रवारणाके दिन थु ल्ल च्च य का दोप किया हो और; कोई कोई भिक्षु (उस भिक्षुके दोपको) थुल्ल च्च य मानते हों, और कोई कोई पा चि त्ति य; कोई कोई युल्ल च्च य मानते हों ओर कोई कोई पा टि दे स नि य; कोई कोई थु ल्ल च्च य मानते हों और कोई कोई दुक्क ट; कोई कोई थुल्लच्चय मानते हों और कोई कोई दुर्भा प ण; तो भिक्षुओ ! जो थुल्ल च्च य समझनेवाले हैं वह उस भिक्षुको एक ओर ले जाकर धर्मानुसार (दंड) करवाकर संघमें आ ऐसा कहें--'आवुसो ! इस भिक्षुने जो दोष किया था उसका इसने धर्मानुसार प्रतिकार कर लिया। यदि संघ उचित समझे तो प्रवारणा करे।" 847 ४- "यदि भिक्षुओ ! ० पा चि त्ति य दोष किया हो ०1 848 ५-"पा टि दे स नि य (दोष) किया हो ०। 849 ६-"दुवक ट (का दोप) किया ०1 850 ७-"दुर्भाषण (दोष) किया हो और कोई कोई भिक्षु (उस भिक्षुके दोपको) दुर्भा पण मानते हों और कोई कोई सं घा दि से स, तो भिक्षुओ ! जो वह दुर्भापण समझनेवाले हैं उस भिक्षु को एक ओर लेजाकर धर्मानुसार (दंड) करवाकर संघ में आ ऐसा कहें—'आवुसो ! इस भिक्षुने जो दोप किया था उसका इसने धर्मानुसार प्रतिकार कर दिया । यदि संघ उचित समझे तो प्रवारणा करे ।' यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षुने प्रवारणाके दिन दुर्भापण (दोप) किया हो और कोई कोई भिक्षु (उस भिक्षुके दोपको) दुर्भा पण मानते हों और कोई कोई थुल्ल च्च य; कोई कोई दुर्भा प ण मानते हों और कोई कोई पा चित्तिय, कोई कोई दुर्भा प ण मानते हों और कोई कोई पा टि दे स नि य, कोई कोई दुर्भा प ण मानते हों और कोई कोई दुक्क ट; तो भिक्षुओ! जो भिक्षु दुर्भा पण माननेवाले हैं, उस भिक्षुको एक ओर लेजाकर० यदि संघ उचित समझे तो प्रवारणा करे।" 851 (६) वन्तु या व्यक्तिको स्थगित करना १-"यदि भिक्षुओ ! कोई भिक्षु प्रवारणाके दिन संघमें कहे-'भन्ते ! संघ मेरी सुने, यह वस्तु (दोप) जान पळती है किन्तु व्यक्ति नहीं जान पळता; यदि संघ उचित समझे तो वस्तुको स्थगित कर प्रदारणा करे, तो उसे ऐसा कहना चाहिये—'आवुस ! भगवान्ने शुद्ध (भिक्षुओं )को प्रदारणा करनेका विधान किया है । यदि वस्तु जान पळती है और व्यक्ति नहीं तो उसे इसी वक्त कहो।" 852 २-'यदि भिक्षुओ ! कोई भिक्षु प्रदारणाके दिन संघके वीचमें ऐसा कहे-'भन्ते! संघ मेरी गुने, यहां व्यक्ति जान पळता है किन्तु वस्तु नहीं; यदि संघ उचित समझे तो व्यक्तिको स्थगितकर प्रवाणा करे, तो उसको ऐसा कहना चाहिये-'आदुस ! भगवान्ने गुद्ध और समग्र ( भिक्षुओं )के (पको) प्रवारणा करनेका विधान किया है । यदि व्यक्ति जान पळता है वस्तु नहीं तो उस (कन्तु कोहनी दक्त कहो।" 853 -"दि भिक्षुशो! कोई भिक्षु प्रदारणाके दिन संघमें ऐसा कहे-'भन्ते ! नंघ ! मेरी नुने, यह रतुनी जान परनी है व्यक्ति भी ; पदि नंद उचित समझे तो दन्तु और व्यक्तिको स्थगितकर करा दो, हो यो रेला बहना चाहिये-गबुन ! नाबान्ने गुट और ममग्र ( भिक्षुओं )के. () मरनेका विधान मिला है। यदि दन्तु नी जान पळती है व्यक्ति भी तो उसको .