- -महावग्ग
1) २०० ] [ ५११ कहा-'भन्ते ! यह अस्सी हजार गाँवोंके मुखिया भगवान्के दर्शनको यहाँ आये हैं, मो अब जिसका भगवान् काल समझें ( वैसा वह करें)।" "तो स्वागत ! बिहारकी छायामें आसन बिछा । "अच्छा भन्ते !"- (कह) आयुष्मान् स्वागतने भगवान्को उत्तर दे, चौकी ले, भगवान्के सामने अन्तर्धान हो उन अस्सी हजार गाँवोंके देग्यते-देग्वते उनके सामने प टि या से प्रकटहो बिहारकी छायामें आसन बिछाया.। तव भगवान् बिहार ( = रहनेकी कोठरी )ये निकलकर बिहारकी छायामें बिछे आसनपर बैठे । तब वह अस्सी हज़ार गाँवोंके मुखिया जहाँ भगवान् थे वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठे । तब वह अस्सी हजार गाँवोंके मुखिया आयुप्मान् स्वागत की ओर ही निहारते थे, भगवान्की ओर नहीं। तब भगवान्ने उन अम्सी हज़ार गाँवोंके मुखियोंके मनकी वातको जानकर आयुष्मान् स्वागतको संबोधित किया- "तो, स्वागत ! ओर भी प्रसन्नताके लिये तू दिव्य-शक्ति ऋद्धि-प्रा ति हार्य (= ऋद्धियोंका दिखाना ) को दिखा। "अच्छा भन्ते ! (कह) आयुष्मान् स्वा ग त भगवान्को उत्तर दे आकाशमें जाकर टहलते भी थे, खळे भी होते थे, बैठते भी थे, लेटते भी थे, धुआँ भी देते थे, प्रज्ज्वलित भी होते थे, अन्तर्धान भी होते थे। तव आयुष्मान् स्वा ग त ने आकाशमें अनेक प्रकारकी दिव्य-शक्त्ति ऋद्धि-प्रा ति हार्य को दिखा भगवान्के पैरों में सिरसे बंदनाकर भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! भगवान् मेरे शास्ता (: गुरु) हैं और मैं श्रावक (=शिष्य) हूँ। भन्ते ! भगवान् मेरे शास्ता हैं और मैं श्रावक हूँ । भन्ते ! भगवान् मेरे शास्ता हैं और मैं श्रावक हूँ। तब उन अस्सी हज़ार गाँवोंके मुखियोंने—'आश्चर्य है हो ! अद्भुत है हो ! ! जो कि शिष्य ऐसा दिव्य-शक्तिधारी है । ऐसा महा ऋद्धिवाला है !! अहो ! शास्ता कैसे होंगे !'- (कह) भगवान्की ओरही निहारते थे. आयुष्मान् स्वागतकी ओर नहीं । तव भगवान्ने उन अस्सी हज़ार गाँवों (के मुखियों) के मनकी बातको जानकर दान-कथा, शील- कथा, स्वर्ग-कथा और काम-भोगोंके दुष्परिणाम, अपकार, मालिन्य और काम-भोगसे रहित होने के गुणको प्रकट किया । जब भगवान्ने उन्हें भव्य-चित्त, मृदु-चित्त, अनाच्छादित-चित्त, आह्लादित-चित्त, प्रसन्न-चित्त देखा; तब जो बुद्धोंका उठानेवाला उपदेश है-दुःख, दुःखका कारण, दुःखका नाश, और दुःखके नाशका उपाय—उसे प्रकाशित किया । जैसे कालिमा रहित श्वेत वस्त्र अच्छी तरह रंगको पकळता है, इसी प्रकार उन अस्सी हज़ार गाँवोंके मुखियोंको उसी आसनपर—'जो कु छ उत्पन्न हो ने वाला है, व ह ना श हो ने वाला है, यह विरज=निर्मल धर्मकी आँख उत्पन्न हुई। तब उन्होंने दृष्ट- धर्म (=धर्मका साक्षात्कार करनेवाला), प्राप्त-धर्म, विदित-धर्म, पर्यवगाढ़-धर्म ( अच्छी तरह धर्मका अवगाहन करनेवाला ), संदेह-रहित, वाद-विवाद-रहित और विशारदताको प्राप्त हो भगवान्के धर्ममें अत्यन्त निष्ठावान् हो भगवान्से यह कहा-'आश्चर्य ! भन्ते ! ! अद्भुत ! भन्ते ! ! जैसे औंधेको सीधा करदे, ढंकेको उघाळ दे, भूलेको रास्ता बतलाये, अँधेरेमें तेलका दीपक रखदे, जिससे कि आँखवाले देखें । ऐसेही भगवान्ने अनेक प्रकारसे धर्मको प्रकाशित किया । यह हम भगवानकी शरण जाते है। धर्म और भिक्षु संघकी भी। आजसे भगवान् हमें अंजलिबद्ध शरणागत उपास के स्वीकार करें। २-तब सो ण को टि बी स को ऐसा हुआ-'मैं भगवान्के उपदेशे धर्मको जिस प्रकार समझ रहा हूँ (उससे जान पळता है कि) यह सर्वथा परिपूर्णा, सर्वथा परिशुद्ध, खरादे-शंखसा उज्ज्वल ब्रह्मचर्य, घरमें रहकर सुकर नहीं है । क्यों न मैं शिर-दाढ़ी मुंळा, कापाय वस्त्र पहिन घरसे बेघर -