पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५०

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५-चर्म-स्कंधक १--जूते संबंधी नियम । २- सवारी, चारपाई, चौकीके नियम । ३-मध्यदेशसे बाहर विशेष नियम । ६१-जूते संबंधी नियम ? ---राजगृह (१) सोण कोटिविंशको प्रव्रज्या १-उस समय बुद्ध भगवान् रा ज गृह में गृध्रकूट पर्वतपर विहार करते थे। उस समय मगधराज सेनिय विम्बि सा र अस्सी हजार गांवोंका स्वामी हो राज्य करता था। उस समय चंपा में सोण कोटिबीस ( =बीस करोड़का धनी ) नामक सुकुमार श्रेप्ठि पुत्र रहता था। उसके पैरके तलबोंमें रोएँ उगे थे । तव मगधराज सेनिय बिम्बि सा र ने उन अस्सी हजार गांवों ( के मुखियों) वो किसी कामके लिये जमाकर सोण को टि वी स के पास दूत भेजा-'सोण का आगमन चाहता हूँ।' तब सोण कोटिबीसके माता-पिताने सोण से यह कहा- 'तात सोण ! राजा तेरे पैरोंको देखना चाहता है । सो तात सोण ! तू राजाकी ओर पैर न फैलाना । राजाके सामने पल्थी मारकर बैठना । पल्थी मारकर बैठने पर राजा तेरे पैरोंको देख लेगा।' तब सोण कोटिवीसके लिये पालकी लाई गई। सोण कोटिवीस जहाँ मगधराज सेनिय बिम्बि सा र था वहीं गया। जाकर मगधराज सेनिय विम्बिसार को प्रणाम कर पल्थी मारकर वंठा । मगधराज लेनिय विम्बिसारने सोण कोटिवीसके पैरव तलवोंमें उत्पन्न रोमोंको देखा। तब मगधराज गेनिय विम्बिसारने उन अम्मी हज़ार गांवोंके मुखियोंको इस जन्मके हितकी वातका उपदेश कर प्रेरित किया-~-'भणे १ ! मैने तुम्हें इस जन्मके हितकी वातके लिये उपदेश किया। जाओ ! उन भगवान्वी नेवामें । वह भगवान् तुम्हें जन्मान्तरके हितकी वातके लिये उपदेश करेंगे।' तब वह अस्लीहज़ार गाँवोंके मुखिया जहाँ गृध्र क ट पर्वत था वहाँ गये । उस समय आयु- मान् वा ग त भगवान्वे उपन्या का ( : निरंतर नेवक ) थे । नद उन अम्मी हजार गाँव ( के- मुनियों ने आयुष्मान् स्वागत के पास..जाकर यह पूछा-'भन्ने ! यह अम्मी हजार गाँवोंक ( मुनिया ) भगवान के दर्शनको वहां आये है । अच्छा हो भन्ने ! हम भगवान्का दर्शन पायें ।" "तो तुम आवमानो ! मुहुर्त भर यही हो, जब तक कि में भगवान्ने निवेदन कम्।" तर आयुष्मान् लागत ने उन अन्नी हजार गाँवों (के मुग्वियों) के सामने देखते- ने पदिमा (अचादापाण) कार (अन्तर्धान हो) भगवान्क मामने प्रकट हो यह अपनेते होटेदो दोधन कर इस दवा व्यवहार होता था ।