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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५७

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२०६ ] ३-महावग्ग [ ५७१।१० टहलते देख जूता पहिनकर नहीं टहलना चाहिये ; जो टहले उसे दुक्क ट का दोष हो । भिक्षुओ ! आरापमें जूता नहीं पहनना चाहिये, जो पहने उसे दुक्कटका दोप हो।" 7 (८) विशेष अवस्थामें पाराममें भी जूता पहिनना १--उस समय एक भिक्षुको पा द की ल रोग' था। भिक्षु पकळकर उसे पाखानेके लिये और पिशाव कराने ले जाते थे। भगवान्ने बिहार देखने के लिये घूमते वक्त उन भिक्षुओंको उस भिक्षुको पकळकर पाखानेके लिये भी पेशाबके लिये भी ले जाते देखा। देखकर जहाँ वह भिक्षु ये वहां गये। जाकर उन भिक्षुओंसे यह कहा-"भिक्षुओ! इस भिक्षको क्या बीमारी है ?" "भन्ते ! इस आयुष्मान्को पा द की ल रोग है । इनको हम पकळकर पात्रानेके लिये भी, पेगाव के लिये भी ले जाते हैं।" तब भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ उसे जूता धारण करनेकी जिसके कि पीळा हो, पैर फटे हों या पादकील रोग हो।" 8 २--उस समय भिक्षु बिना पैर धोये चारपाईपर भी चढ़ते थे, चौकीपर भी चढ़ते थे। उससे चीवर भी मैला होता था और निवास-स्थान भी । भगवान्से यह बात कही "भिक्षुओ ! जूता धारण करनेकी अनुमति देता हूँ। यदि उसी समय चारपाई या चौकीपर चढ़ना हो।" 9 (९) आराममें जूता, मसाल, दोपक और दंड रखनेका विधान उस समय भिक्षु रातके वक्त उपोसथके स्थानमें भी, बैठनेके स्थानमें भी जाते हुए अन्धकारमें खाँळ (=गळहे)में भी, काँटेमें भी चले जाते थे और पैरोंको पीळा होती थी। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ आराममें भी जूता, मसाल, दीपक और कत्त र दंड (=डंडा)- को धारण करनेकी।" 10 (१०) खळाऊँका निषेध उस समय प ड वर्गी य भिक्षु रात्रिके भिनसारको उठकर खळाऊँपर चढ़ ऊँचे शब्द, महाशब्द, खटखट शब्द करते टहलते थे और अनेक प्रकारकी ति र च्छा न क था (=फजूलकी बात) जैसे कि- राज-कथा, चोर-कथा, महामात्य-कथा, सेना-कथा, भय-कथा, युद्ध-कथा, अन्न-कथा, पान-कथा, वस्त्र-कथा, शयन- कथा, माला-कथा, गंध-कथा, ज्ञाति-कथा, यान-कथा, ग्राम-कथा, कस्बेकी कथा, नगर-कथा, देश- कथा, स्त्री-कथा, पुरुष-कथा, शूर-कथा, चौरस्तेकी कथा, पनघटकी कथा, पहले मरोंकी कथा, मानत्त्वकी लोक-आख्यायिका, समुद्र-आख्यायिका--ऐसी भव और अभवकी कथा कहते थे और इस प्रकार कीळोंको भी आक्रान्त करते थे, मारते थे और भिक्षुओंको भी समाधिसे च्युत कर देते थे । तव जो वह अल्पेच्छ भिक्षु थे वह हैरान.. होते थे--'कैसे पड्वर्गीय भिक्षु रातके विहानको ० भिक्षुओंको भी समाधिसे च्युत कर देते हैं !' भगवान्से यह बात कही।- "सचमुच भिक्षुओ! पड्वर्गीय भिक्षु ० समाधिसे च्युत करते हैं ?" “(हाँ) सचमुच भगवान् !" फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! काठकी खळाऊँको नहीं धारण करना चाहिये। जो धारण करे उसको दुक्कटका दोप हो।" II कथा, १ एक प्रकारका परका रोग, जिसमें काँटे लगा सा ज़ख्म होता है।