पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५६

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५७१७ ] गुरुजनोंके नंगे-पैर होनेपर जूतेका निषेध [ २०५ के चर्म०, हरिनके चर्म०, ० ऊदबिलावके चर्म ०, ०विल्लीके चर्म०, ० काळक-चर्म०, ०उल्लूके चर्मसे परिष्कृत जूतोंको धारण करते थे। ० भगवान्से यह बात कही-- "भिक्षुओ ! सिंह-चर्मसे वने० जूतोंको नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्कट का दोप हो।" (६) पुराने बहुत तल्लेके जूतेका विधान तब भगवान् पूर्वाह्णक समय (वस्त्र) पहन, पात्र-चीवर ले एक भिक्षुको अनुगामी बना रा ज- गृह में भिक्षाके लिये प्रविष्ट हुए। बहुत तल्लेवाले जूतेबो पहने एक उपासकने दूरसे ही भगवान्को आते देखा । देखकर जूतेको छोळ जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर जहाँ, वह भिक्षु था, वहाँ गया। जाकर उस भिक्षुको अभिवादनकर यह बोला- "भन्ते ! किस लिये पैर खुजला रहे हैं ?" "पैर फूट गये हैं।" "तो, भन्ते ! यह जूता है।" "नहीं, आवस ! भगवान्ने बहुत तल्लेके जूतेका निषेध किया है।" (भगवान्ने कहा-) "भिक्षु ! लेले इस जूतेको।" तब भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ (पहिनकर) छोळे हुए बहुत तल्लेके जूतेकी। भिक्षुओ ! नया बहुत तल्ले-वाला जूता नहीं पहनना चाहिये। जो पहने उसे दुक्कटका दोप हो।" 6 (७) गुरुजनोंके नंगे-पैर होनेपर जूतेका निपेध उस समय भगवान् चौळेमें बिना जूतेहीके टहल रहे थे। 'शास्ता विना जूतेके टहल रहे हैं' यह (देव) स्थविर भिक्ष भी बिना जूतेहीके टहल रहे थे। प वी य भिक्षु शास्ताको विना जूतेके टहलते और स्थविर भिक्षुओंको भी बिना जूतेके टहलते (देखकर) भी जूता पहने टहलते थे। (यह देख) जो अल्पेच्छ भिक्षु थे, वह हैरान.. होते थे---'वैसे पड्वर्गीय भिक्षु शास्ताको बिना जूतेके टहलते (देख) और ग्थविर भिक्षुओंको भी बिना जूतेके (देख) जूता पहने टहलते हैं !' तब उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। "क्या सचमुच भिक्षओ! पड्वर्गीय भिक्षु शास्ताको विना जतेके टहलते (देख) • जूता पहन कर टहलते है ?" "(हाँ) सचमुच भगवान् !" बदभगवान्ने फटकारा- "कन शिक्षओ ! यह मोघ-पुरुप, गान्ताको बिना जूता पहने टहलते (देख) ० जूता पहने टहलते है : भिमओ ! यह काम-भोगी रवेत वन्त्र पहननेवाले गृहीं भी अपनी जीविकाके हुनर (=गिल्प) के लि. (अपने ) आचार्य गौरदयुक्त, आदरयुक्त, एक तहकी वृत्तिवाले हो न्हते हैं। भिक्षुओ ! यह कराया दंगा वि. तुम इस प्रकारके नृन्दर तोग्ने व्याख्यान धर्ममें प्रवजित होकर आचार्योमें, और आचार्यलयोंमें. उपाध्यायोंमें और उपाध्यायनुल्लोंमें, गौरव रहित, आदरहित, असमान वृत्तिके हो लोगे ! निधो न हकप्रगाहोंनो प्रसन्न करने के लिये है।" गगनने पटवारका धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "fast ' अचानका अनर्गल्योंको, पानाच या उपाध्याय तुल्योंको बिना इतके एह प्रकारमा हा रोग जिनमें कांटे लगाना कम होता है ।