पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२५९

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. , २०८ ] ३-महावग्ग [ ५२२ फटकार करके धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षुओ ! तृण, मूंज०, बल्वज०, हिंताल०, कमल०, कम्बल०,की पादुकाएं नहीं धारण करनी चाहिएँ, और न सुवर्णमयी, न रौप्यमयी०, न मणिमयी०, न वैदूर्यमयी०, न स्फटिकमयी०, न काँसमयी०, न काँचमयी०, न राँगेकी०, न सीसेकी०, न ताँबे (=ताम्र । लोह) की पादुकाएं धारण करनी चाहिए। जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोप हो। और भिक्षुओ ! काची (=बुट्ठी ? ) तक पहुँचनेवाली पादुकाको नहीं धारण करनी चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो । भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, नित्य रहनेकी जगहपर तीन प्रकारकी पादुकाओंके, इस्तेमाल करनेकी-न चलनेकी, और पेशाब पाखानेकी, और आचमन (के वक्त) की।" 14 ? ( 1) O , ४-श्रावस्ती (१२) गाय वछोंको पकळने मारने आदिका निषेध तव भगवान् भ दि यामें अच्छी तरह विहार कर जिधर था व स्ती है, उवर विचरनेके लिये चल दिये। क्रमशः विचरते जहाँ श्रावस्ती है वहाँ पहुँचे । भगवान् वहाँ श्रावस्तीमें अ ना थ पिं डि क- के आराम जे त व न में विहार करते थे । उस समय पड्वर्गीय भिक्षु अचि र व ती (=राप्ती) नदीमें तैरती गायोंकी सींगोंको भी पकळते थे, कानों, गर्दन०, पूंछको भी पकळते थे, पीठपर भी चढ़ते थे । राग-युक्त चित्तसे लिंगको भी छूते थे, बछियोंको भी अवगाहन कर मारते थे। लोग हैरान.. होते थे- 'कैसे शाक्यपुत्रीय श्रमण • तैरती गायोंको ० मारते हैं, जैसे कि काम-भोगी गृहस्थ । भिक्षुओंने सुना। भगवान्से यह बात कही।-- "सचमुच भिक्षुओ! ०?" "(हाँ) सचमुच भगवान् ! भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! गायोंकी सींग०, कान०, गर्दन०, पूंछ नहीं पकळनी चाहिये और न पीठपर चढ़ना चाहिये । जो चढ़े उसे दुक्क ट का दोप हो। और भिक्षुओ! न राग-युक्त चित्तसे लिंगको छूना चाहिये। जो छूवे उसे थु ल्ल च्च य का दोष हो। न बछियोंको मारना चाहिये; जो मारे उसे धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये।" 15 ६२-सवारी, चारपाई चौकीके नियम (१) सवारीका निषेध उस समय षड्वर्गीय भिक्षु पराये पुरुषके साथवाली स्त्रीसे युक्त, पराई स्त्रीके साथवाले पुरुषसे युक्त यानसे जाते थे। लोग हैरान.. होते थे-(०) जैसे गंगाके मेलेको।' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! यानसे नहीं जाना चाहिये । जो जाये उसे दुक्क ट का दोप हो।" 16 (२) रोगमें सवारीका विधान १-उस समय एक भिक्षु को स ल देशमें भगवान्के दर्शनके लिये श्रावस्ती जाते वक्त रास्तेमें वीमार हो गया। तब वह भिक्षु रास्तेसे हटकर एक वृक्षके नीचे बैठा। लोगोंने उस भिक्षुको देखकर यह कहा- "भन्ते ! आर्य कहाँ जायँगे?" "आवुस ! मैं भगवान्के दर्शनके लिये श्रावस्ती जाऊँगा।"