पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२६१

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२१० ] ३-महावग्ग [21 को धारण करते थे और उसे चारपाईके प्रमाणसे भी काटकर रखते थे ० चौकीके बाहर भी विछा रखते थे। उस समय एक दुराचारी भिक्षु, एक दुराचारी उपासकके घर में आने जानेवाला था। तब वह दुराचारी भिक्षु पूर्वाह्णके समय (वस्त्र) पहनकर, पात्र-चीवरले, जहाँ उस दुराचारी उपासकका घर था वहाँ गया। जाकर विछे आसनपर बैठा। तब वह दुराचारी उपासक जहाँ वह दुराचारी भिनु या वहाँ गया। जाकर उसे अभिवादनकर एक ओर बैठा। उस समय उस दुराचारी उपासकके पास एक तरुण सुन्दर दर्शनीय (चित्तको) प्रसन्न करनेवाला, चीतेके बच्चेकी तरहका चितकबरा बछळा था। तब वह पापी भिक्षु उस बछळेको बळे चावसे निहारता था। तब उस पापी उपासकने उस पापी भिक्षुसे यह कहा- "भन्ते ! आर्य क्यों मेरे बछळेको इतनी चावसे निहार रहे हैं ?" "आवुस ! मुझे इस वछळेके चमळेका काम है।" तब उस पापी उपासकने उस बछळेको मारकर चमळेको धून कर उस पापी भिक्षुको दिया। तब वह पापी भिक्षु उस चमळेको (लेकर) संघाटीसे ढाँककर चला गया। तब उस वछळेपर स्नेह रखनेवाली गायने उस पापी भिक्षुका पीछा किया। भिक्षुओंने पूछा- "आवुस ! क्यों यह गाय तेरा पीछा कर रही है ?' "आवुसो ! मैं भी नहीं जानता कि क्यों यह गाय मेरा पीछा कर रही है।" उस समय उस पापी भिक्षुकी संघाटी खूनसे सनी हुई थी। भिक्षुओंने यह कहा- "किन्तु आवुस यह तेरी संघाटीको क्या हुआ?" तब उस पापी भिक्षुने भिक्षुओंसे वह वात कह दी। "क्या आवुस ! तूने प्राण हिंसाकी प्रेरणाकी?" "हाँ आवुस !" तब वह जो अल्पेच्छ भिक्षु थे वह हैरान · होते थे- "कैसे भिक्षु प्राण-हिंसाकी प्रेरणा करेगा? भगवान्ने तो अनेक प्रकारसे प्राण-हिंसाकी निंदा की है; और प्राण-हिंसाके त्यागको प्रशंसा है।" तव उन भिक्षुओं ने भगवान्से यह बात कही।- तब भगवान्ने इसी प्रकरणमें, इसी संबंधमें भिक्षु-संघको एकत्रित करवा उस पापी भिक्षुसे पूछा- "सचमुच भिक्षु तूने प्राण-हिंसाके लिये प्रेरणाकी?" “(हाँ) सचमुच भगवान् !" बुद्ध भगवान्ने फटकारा–“मोघ पुरुष (=निकम्मे आदमी) ! कैसे तूने प्राणहिंसाकी प्रेरणा की ? मोघपुरुप ! मैंने तो अनेक प्रकारसे प्राण-हिंसाकी निंदा की है और प्राण-हिंसाके त्यागको प्रशंसा है। मोघ पुरुप ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है ० ।" फटकारकर धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! प्राण-हिंसाकी प्रेरणा नहीं करनी चाहिये। जो प्रेरणा करे उसका धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये। भिक्षुओ! गायका चाम नहीं धारण करना चाहिये। जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो। भिक्षुओ! कोई भी चर्म नहीं धारण करना चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोष हो।" 22 (७) चमळे मढ़ी चारपाई आदिपर बैठा जा सकता है १–उस समय लोगोंकी चारपाइयाँ भी, चौकियां भी, चमळेसे मढ़ी होती थी, चमळेसे बँधी