पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२८०

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nj. - ६३।११ ] भोजनोपरान्त खाना [ २२९ "भन्ते ! इस ग्वानेकी चीज़को आर्य उपनं द को दिखला संघको देना चाहिये।" भगवान्से यह बात कही।- "तो भिक्षुओ! लेकर रख छोळो जब तक कि उ प नं द आता है ।" 9I ४-नव आयुष्मान् उपनंद गाक्यपुत्र भात (ग्याने) पहले (गृहस्थ) कुटुम्बोंमें वैठकीकर दिन के (मध्य) में आते थे। उस समय भिक्षु दुर्भिक्ष होनेसे थोळेसे भी ० भिक्षु संदेहमें पळ नहीं स्वीकार करते थे। "भिक्षुओ! स्वीकार करो, भोजन करो।" "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ भातके पहिले लियेको, भोजन पूत्ति हो जानेपर भी अतिरिक्त न हो तो उसे भोजन करनेकी।" 92 -श्रावस्ती ५-तब भगवान् ग ज गृह में इच्छानुसार विहारकर जिधर श्रा व स्ती है उधर चारिकाके लिये चल पळे त्रामगः चान्किा कन्ते जहाँ श्रा व स्नी है वहाँ पहुँचे । वहाँ भगवान् श्रावस्ती में अ ना थ पिंडिका के आगम जे न व न में विहार करते थे। उस समय आयुष्मान् सारिपुत्रको काय-डाह (=गरीर जलने ) का रोग था। तब आयुप्मान् म हा मौदगल्या य न जहाँ आयुप्मान् सा रि पुत्र थे वहाँ गये । जाकर आयुष्मान् मान्पुित्रसे यह कहा-- "आवुस ! मारिपुत्र पहले जब तुम्हे कायडाह रोग होता था तो कैने अच्छा होता था ?" "आयुस ! भ गीत (=कमलकी जन.) कमल-नालगे।" नब आयमान् महामौद्गल्यायन जैने बलवान् पृम्प नमेटी बांहको पमारे, पमारी बांहको समेटे वैये ही (अप्रयाग ) जेतवनमें अन्तर्धान हो म दा वि. नी पुष्करिणीय नीर जा प्रकट हुए। एक ना ग ने आयमान् महामौद्गल्यायनको दूग्ये ही आते देया। देव कर...यह कहा- "आय भन्ने ! आर्य महामौद्गल्यायन, भन्ते ! स्वागत है आर्य महामौद्गल्यायनका । भन्ते ! आयंगो किन चीजवी जरूरत है ? क्या हूँ ?" "आवन ! मो भगीळवी ज़रूरत है और कमल-नालकी ।" नव जग नागने दगारे नागको आना दी-तो नगे ! आर्यको जितनी आवश्यकता हो उतनी भगी. और कमल-नारदो। नत्र का नाग मंदाकिनी गुप्तारिणीमें पुनकर मरने ननीळ और कमल-नालको निकाल अच्छी को मनी बाध जहां आवामान् महानौद्गल्यापन थे वहां गया। मान कामोद गल्ला वन जे न बन मे मा प्रकट हुए । और बह नाग भी मंदा- frन हो जेन टन में प्रकट हुआ। नब वह नार आयुष्मान् महामौद्- कमी कालबाल दे बनने वन हो मंदाकिनी तनिधी, नीर हा प्रकट गगन नानिको नन और वमन्द-नाल दिया। तः कडा पालन हो गई और

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