पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२८३

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" २३२ ] ३-महावग्ग [ ६४२ गया। जाकर अभिवादनकर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे सु प्रि य उपासकने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! भिक्षु-संघके साथ कलका मेरा भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब गु प्रिय उपासक भगवान्की स्वीकृतिको जान आसनसे उठ भगवान्की प्रदक्षिणाकर चला गया। तब मुप्रिय उपासकने उस रातके बीत जानेपर उत्तम खाच- भोज्य तैयार करा समयकी गूचना दी-"भन्ते ! (भोजनका) समय है, भात तैयार है।" तब भगवान् पूर्वाह्णके समय पहिनकर पात्र-चीवर ले जहाँ मुप्रिय उपासकका घर था वहाँ गये। जाकर भिक्षु-संघके साथ विछे आसनपर बैठे। तब मुप्रिय उपामक जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर खळा हुआ। एक ओर खळे मुप्रिय उपासकसे भगवान्ने यह कहा- -“कहाँ है सुप्रिया ?" "वीमार है भगवान् ! "तो आवे।" "भगवान् ! नहीं आसकती।" "तो पकळकर ले आओ !" तव सुप्रिय उपासक सु प्रि या उपासिकाको धरकर ले आया। भगवान्के दर्शन मात्रसे (उसी समय) उसका बळा घाव भर गया। चाम ठीक हो गया और लोम भी जम गया। तब सुप्रिय उपासक और सुप्रिया उपासिकाने-“आश्चर्य है हे ! अद्भुत है हे ! तथागतकी महा दिव्यशक्ति, और महानु- भावताको, जो कि भगवान्के दर्शन मात्रसे वळा घाव भर गया। चाम ठीक हो गया और लोम भी जम गया"- (कह) हर्षित-उदग्र हो अपने हाथसे उत्तम खाद्य-भोज्य द्वारा बुद्ध सहित भिक्षु-संघको संतर्पित. . .किया। भगवान्के भोजनकर हाथ हटा लेनेपर एक ओर बैठ गये। तब भगवान् सुप्रिय उपासक और सुप्रिया उपासिकाको धार्मिक कथासे...समुत्तेजित सम्प्रहर्पितकर आसनसे उठकर चले गये। तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षु-संघको एकत्रितकर भिक्षुओंसे पूछा- "भिक्षुओ ! किसने सुप्रिया उपासिकासे मांस माँगा?"-ऐसा कहनेपर उस भिक्षुने भग- वान्से यह कहा- "भन्ते ! मैंने सुप्रिया उपासिकासे मांस माँगा।" "लाया गया भिक्षु?" “(हाँ) लाया गया भगवान् ।" "खाया तूने भिक्षु?" "(हाँ) खाया मैंने भगवान् ।” “समझा बूझा तूने भिक्षु?" "नहीं भगवान् ! मैंने (नहीं) स म झा बू झा।" बुद्ध भगवान्ने फटकारा-"कैसे तूने मोघपुरुष ! विना समझे बूझे मांसको खाया ? मोघ- पुरुप ! तूने मनुष्यके मांसको खाया। मोघ पुरुप ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है । (२) मनुष्य, हाथी आदिके मांस अभक्ष्य १-फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! ऐसे श्रद्धालु-प्रसन्न मनुष्य हैं जो अपने मांस तकको दे देते हैं। "भिक्षुओ! मनुष्य-मांस नहीं खाना चाहिये । जो खाये उसको थुल्लच्चयका दोप हो।" 97 २–उस समय राजाके हाथी मरते थे। दुर्भिक्षके कारण लोग हाथीका मांस खाते थे।