पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२८८

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६६४१५ ] वेलट्ठ कात्यायनका गुळका व्यापार [ २३७ "अच्छा भंते !" (कह) वेल हक च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे, भिक्षुओंको गुळ दे यह कहा- "भंते ! मने भिक्षुओंको गुळ दे दिया, और यह बहुतसा गुळ वाक़ी है । भंते मुझे क्या करना चाहिये ?" ! "तो कच्चान ! भिक्षुओंको गुळने संतर्पित कर।" "अच्छा भंते !" (कह) बे ल ह क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे, भिक्षुओंको गुळोंसे (=भेलियोंसे) संतर्पित किया । किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंने पात्रोंको भर लिया, किन्हींने ज ल छक्कों को, किन्हींने थैलोंको भर लिया । तब बे ल ह क चा न ने भिक्षुओंको गुळोंसे संतपितकर भगवान् से यह कहा- "भन्ते ! मैंने भिक्षुओंको गुळोंने संतर्पित कर दिया और बहुतसा गुळ बाक़ी है । भंते ! मैं (इनका) क्या करें ?" "तो कच्चान ! तू गुळको शेष-भोजी (= विघासाद )को यथेच्छ दे दे।" "अच्छा भंते !" (कह) वे लहक चा न ने भगवान्को उत्तर दे गुळ को यथेच्छ विघा सा- दा न दे भगवान्ने यह कहा-- "भंते ! गुळका यथेच्छ विघासादान मैंने दे दिया और बहुतसा यह गुळ बचा हुआ है । मुझे क्या करना चाहिये ?" "नो कच्चा न ! जूठ न्वाने वालोंको इन गुळोंने संतर्पित कर ।" "अच्छा भंते !" (कह) बे ल ह क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे जूठ खाने वालोंको गुळोंसे गंतर्पित किया। विन्ही किन्ही जट ग्वाने वालीने कुंदीको भी घनोंको भी भर लिया, पिटारियों और उछंगोगो भी भर दिया । तब लट्ट वा च्चा न ने जूट पाने वालोंको गुलोसे मंतपितकर भगवान् से यह कहा-