पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२८७

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२३६ ] ३-महावग्ग [ ६४१५ उठकर चले गये। तब भगवान्के चलेजानेके थोळीही देर बाद उस श्रद्धालु तरुण महामात्यको पछतावा होने लगा। उदासी होने लगी-“मुझे अलाभ है रे ! मुझे दुर्लाभ मिला है रे ! मुझे सुलाभ नहीं हुआ है रे ! जोकि मैं ने कुपित असंतुष्ट हो चिढ़ानेकी इच्छासे भिक्षुओंके पात्रोंको भर दिया- 'खाओ ! या लेजाओ !'-क्या मैंने पुण्य अधिक कमाया या अपुण्य ?" तब वह श्रद्धालु तरुण महामात्य जहाँ भगवान् थे वहां गया । जाकर जहाँ भगवान् ये एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे उस ... महामात्यने भगवान्गे यह कहा- "भन्ते ! भगवान्के चले आनेके थोळीही देर बाद मुझे पछतावा होने लगा० क्या मैंने पुण्य अधिक कमाया या अपुण्य ?" "आवुस ! जोकि तूने दूसरे दिनके लिये बुद्ध-सहित भिक्षु-संघको निमंत्रित किया इससे तूने बहुत पुण्य उपार्जित किया। जोकि तेरे यहाँ एक एक भिक्षुने एक एक दान ग्रहण किया इस बात से तूने बहुत पुण्य कमाया । स्वर्गका आराधन किया।" तब वह महामात्य-'लाभ है मुझे, सुलाभ हुआ मुझे, मैंने बहुत पुण्य कमाया, स्वर्ग का आराधन किया-' यह सोच हर्पित T=उदग्र हो, आसनसे उठ भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणा कर चला गया। तव भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें भिक्षुओंको एकत्रितकर भिक्षुओंसे पूछा- "भिक्षुओ ! सचमुच भिक्षु दूसरेके यहाँ निमंत्रितहो, दूसरेके भोज्य खिचळीको ग्रहण करते हैं ?" "(हाँ) सचमुच भगवान् ।” बुद्ध भगवान्ने फटकारा- "कैसे भिक्षुओ ! वे निकम्मे आदमी दूसरी जगह निमंत्रित हो, दूसरेके भोज्य यवागूको ग्रहण करते हैं ? भिक्षुओ ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है ।" फटकारकर धार्मिक कथा कह भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! दूसरी जगह निमंत्रितहो दूसरेके भोज्य यवागूको नहीं ग्रहण करना चाहिये । जो ग्रहण करे उसे धर्मानुसार (दंड) देना चाहिये ।" 108 ई-राजगृह (५) वेलट्ठ कात्यायनका गुळका व्यापार तब भगवान् अंध क विं द में इच्छानुसार विहारकर साढ़े बारहसौ भिक्षुओंके महान् भिक्षु संघके साथ जिधर राज गृह है उधर चारिकाकेलिये चले । उस समय वे लट्ठ कच्चान (-कात्यायन) सभी गुळके घळोंसे भरी पाँचसौ गाळियोंके साथ रा ज ग ह से अंधक विंद जाने वाले रास्तेमें जा रहा था । भगवान्ने दूरसे ही वे लट्ठ क च्चा न को आते देखा। देखकर मार्गसे हट एक वृक्षके नीचे (भगवान्) बैठ गये । तव वे लट्ठ क च्चान जहाँ भगवान् थे वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभि- वादनकर एक ओर खळा हो गया । एक ओर खळे बे ल ट क च्चा न ने भगवान्से यह कहा- "भंते ! मैं एक एक भिक्षुको एक एक गुळका घळा देना चाहता हूँ।" "तो कच्चान ! तू एक ही गुळके घळेको ला।" "अच्छा भंते !” (कह) वे लट्ठ क च्चा न एक ही गुळके घळेको ले जहाँ भगवान् थे वहाँ गया । जाकर भगवान्से वोला- "भंते ! मैं गुळके घळेको लाया हूँ। मुझे क्या करना चाहिये ?" "तो कच्चान ! तू भिक्षुओंको गुळ दे।"