पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९०

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६४५ ] वेलट्ठ कात्यायनका गुळका व्यापार [ २३७ "अच्छा भंते !" (कह) वे लट्ठ क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे, भिक्षुओंको गुळ दे यह कहा- "भंते ! मैंने भिक्षुओंको गुळ दे दिया, और यह बहुतसा गुळ वाक़ी है । भंते मुझे क्या करना चाहिये ?" !" (कह) "तो कच्चान ! भिक्षुओंको गुळसे संतर्पित कर।" "अच्छा भंते !' लट्ठ क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे, भिक्षुओंको गुळोंसे (=भेलियोंसे) संतर्पित किया। किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंने पात्रोंको भर लिया, किन्हींने ज ल छक्कों को, किन्हींने थैलोंको भर लिया । तब बे लट्ठ क च्चा न ने भिक्षुओंको गुळोंसे संतर्पितकर भगवान् से यह कहा- "भन्ते ! मैंने भिक्षुओंको गुळोंसे संतर्पित कर दिया और बहुतसा गुळ बाक़ी है । भंते ! मैं (इनका) क्या करूँ ?" "तो कच्चान ! तू गुळको शेष-भोजी (=विघासाद )को यथेच्छ दे दे।" "अच्छा भंते !" (कह) वे लट्ठ क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे गुळ को यथेच्छ विघा सा- दान दे भगवान्से यह कहा- "भंते ! गुळका यथेच्छ विघासादान मैंने दे दिया और बहुतसा यह गुळ बचा हुआ है। मुझे क्या करना चाहिये ?" "तो कच्चा न ! जूठ खाने वालोंको इन गुळोंसे संतर्पित कर।" "अच्छा भंते !" (कह) वे लट्ठ क च्चा न ने भगवान्को उत्तर दे जूठ खाने वालोंको गुळोंसे संतर्पित किया। किन्हीं किन्हीं जूठ खाने वालोंने कुंडोंको भी घळोंको भी भर लिया, पिटारियों और उछंगोंको भी भर लिया । तब वे लट्ठ क च्चा न ने जूठ खाने वालोंको गुळोंसे संतर्पितकर भगवान् से यह कहा- "भंते ! मैने जूठ खाने वालोंको गुळोंसे संतर्पित कर दिया और बहुतसा यह गुळ वचा हुआ है । मुझे क्या करना चाहिये ?" "कच्चान ! देवों-सहित मार-सहित ब्रह्मा-सहित (सारे) लोकमें, श्रमण-ब्राह्मण-सहित देव-मनुष्य संयुक्त (सारी) प्रजामें, सिवाय तथागत या तथागतके श्रावकके ऐसे (व्यक्ति) को मैं नहीं देखता जिसके खानेपर यह गुळ अच्छी तरह हज़म हो सके । इसलिये कच्चान ! तू इस गुळको तृण-रहित भूमिमें छोळ दे, या प्राणी-रहित जलमें डालदे।" "अच्छा भंते !” (कह) वे ल ट क च्चा न ने उस गुळको प्राणि-रहित जलमें डाल दिया । तद पानी में डाला वह गुळ चिटचिटाता था, धुंधुआता था, वहुत धुंधुआता था, जैसेकि दिनकी धूपमें छोळा थाल पानीमें डालने में चिटचिंटाता है, धुंधुआता है, बहुत धुंधुआता है, इसी प्रकार वह गुळा तब वे ल ट क च्चा न घबराया हुआ रोमांचित हो जहाँ भगवान्थे वहाँ आया । आकर भगवान् को अभिवादनकर एक ओर बैठा । एक ओर वैटे वे लट्ठ क च्चा न को भगवान्ने आ नु पूर्वी क था अंगवि. दानकथा०' तव देलट्टकच्चान दिदित धर्म० २ हो भगवान्से यह वोला- "आरचर्य भंते ! अद्भुत भंते ! ० २ यह मै भंते ! भगवान्की गरण जाता हूँ; धर्म और भिक्षु-संघकी नी । आजने भगवान् मुझे अंजलिबद्ध गरणागत उपासक स्वीकार करें।" ' देखो पृष्ठ ८४ : २ देखो पृष्ठ ८५ ।