पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९१

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1 २३८ ] ३-महावग्ग [ ६४७ (६) रोगीको गुळ और नीरोगको गुळका रस तव भगवान् क्रमशः चारिका करते जहाँ रा ज गृह था वहाँ पहुंचे । वहाँ भगवान् राजगृहके वेणु व न क लं द क नि वा प में विहार करते थे। उस समय राजगृहमं गुळ बहुत था। भिक्षु हिचकिचा रहे थे कि भगवान्ने गुळकी अनुमति रोगीके लिये दी है या नीरोगके लिये, और गुळको न खाते थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ रोगीको गुळकी, और नीरोगीको गुळके रसकी ।" 109 -पाटलिग्राम (७) पाटिलग्राममें नगर-निर्माण तव भगवान् राजगृहमें इच्छानुसार विहारकर साढ़े बारह सौ भिक्षुओंके महान् भिक्षु-संघ के साथ जिधर पाट लि ग्रा म है उधर चारिकाके लिये चल दिये । तब भगवान् क्रमशः चारिका करते जहाँ पाटलिग्राम है वहाँ पहुँचे । पाटलिग्रामके उपासकोंने सुना कि भगवान् पाट लि ग्राम आये हैं। तब...उपासक जहाँ भगवान् थे वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये। एक ओर बैठे हुये... उपासकोंने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! भगवान् हमारे आवसथागार' (= अतिथिशाला)को स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब.. .उपासक भगवान्की स्वीकृतिको जान आसनसे उठ, भगवान्को अभिवादनकर, प्रद- क्षिणाकर जहाँ आवसथागार था, वहाँ गये० । जाकर चारों ओर बिछौना विछे आवसयागारको बिछवाकर, आसनोंको लगवाकर, पानीकी चाटियोंको रखवाकर तथा तेल-प्रदीप जलवा जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर खळे हो गये । एक ओर खळे हुए पाटली-ग्रामके उपासकोंने भगवान्से यह कहा- (भन्ते ! आवसथागारमें सब विछौने बिछ गये हैं, आसन लग गये हैं, पानीकी मटकियाँ रख दी गई हैं, तेल-प्रदीप जल गये हैं। भन्ते ! भगवान् अब जिसका समय समझें) तव भगवान् पहनकर पात्र-चीवर ले भिक्षुसंघके साथ जहाँ आवसथागार था वहाँ गये। जाकर पैरोंको धो आवसथागारमें प्रविष्ट हो बीचके खंभेके पास पूर्वाभिमुख वैठे। भिक्षु-संघ भी पाँवोंको धोकर आवसथागारमें प्रविष्ट हो पश्चिम की दीवारके पास पूर्वाभिमुख बैठे। पाटली ग्रामके उपासक भी पाँवोंको धोकर आवसथागारमें प्रविष्ट हो पूर्वकी दीवालके पास पश्चिमाभिमुख हो, जिधर भगवान् थे उधर ही मुंह करके बैठे । तब भगवान्ने पाटली ग्रामके उपासकोंको आमंत्रित किया-- १ उदान अ. क. ८: ६ “भगवान् कब पाटलीग्राममें गये ?...श्रावस्ती में धर्म-सेनापति (-सारिपुत्र) का चैत्य बनवा, वहाँसे निकलकर राजगृहमें वास किया। वहाँ आयुष्मान् महामौद्गल्या- यनका चैत्य वनवाकर, वहाँसे निकलकर अंबलठ्ठिकामें वास किया। फिर अ-त्वरित-चारिकासे जनपद- चारिका करते; वहाँ वहाँ एक रात वास करते, लोकानुग्रह करते, क्रमशः पाटलिग्राम पहुंचे। पाटलिग्राममें अजातशत्रु और लिच्छवी राजाओंके आदमी समय समयपर, आकर घरके मालिकोंको घरसे निकालकर, मास भी आधामास भी वस रहते थे। इससे पाटलिग्राम-वासियोंने नित्य पीड़ित हो-उनके आनेपर यह (हमारा) वास-स्थान होगा--(सोचकर)...नगरके वीचमें महाशाला बन- वाई उसीका नाम था 'आवसथागार' । वह उसी दिन समाप्त हुआ था।"