पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९४

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६०४१७ ] पाटलिग्राममें नगर निर्माण । २४१ अर्थको जानकर, उसी समय यह उदान कहा- "(पंडित) छोटे जलाशयोंको छोळ समुद्र और नदियोंको सेतुसे तरते हैं। (जबतक) लोग कूला बाँधते रहते हैं, (तबतक) मेधावी जन पार हो गये रहते हैं।" -कोटिग्राम तव भगवान् जहाँ कोटिग्राम था, वहाँ गये । वहाँ भगवान् को टि ग्राम में विहार करते थे । भगवान्ने भिक्षुओंको आमंत्रित किया- "भिक्षुओ! चारों आर्य-सत्योंके अनुवोध (=वोध)-प्रतिवोध न होनेसे इस प्रकार दीर्घ- कालसे यह दौळनासंसरण (=आवागमन) 'मेरा और तुम्हारा' होरहा है। कौनसे चारों ? भिक्षुओ ! दुःख आर्य-सत्यके वोध-प्रतिवोध न होनेसे०दुःख-समुदय० । दुःख-निरोध० । दुःख-निरोध-गामिनी प्रतिपद् । भिक्षुओ ! सो मैंने इस दुःख आर्य-सत्यको अनुवोध-प्रतिवोध किया०, (तो) भव तृष्णा उच्छिन्न होगई, भवनेत्री (तृष्णा) क्षीण होगई अव पुनर्जन्म नहीं है । "चारों आर्य-सत्योंको ठीकसे न देखनेसे दीर्घकालसे आवागमनमें पळा उन उन जातियोंमें ( जन्मता है )। सो मैंने उनको देख लिया, तृष्णा क्षीण होगई, दुःखकी जळ कट गई अब पुन- र्जन्म नहीं है।" अम्ब पा ली गणिकाने सुना-भगवान् कोटिग्राममें आ गये । अम्बपाली गणिका सुन्दर सुन्दर (भद्र) यानोंको जुळवाकर, सुन्दर यानपर चढ़, सुन्दर यानोंके साथ वै शा ली से निकली; और जहाँ कोटिग्राम था, वहाँ चली। जितनी यानको भूमि थी, उतनी यानसे जाकर, यानसे उतर पैदल ही जहाँ भगवान् थे वहाँ गई । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गई। एक ओर बैठी अम्दपाली गणिकाको भगवान्ने धार्मिक-कथासे संदर्शित समुत्तेजित...किया । तब अम्बपाली गणिका भगवान्से यह बोली- "भन्ते ! भिक्षु संघके साथ भगवान् मेरा कलका भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया । तब अम्बपाली गणिका, भगवान्की स्वीकृतिको जान, आसनसे उठ भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चली गई। वैशाली के लि च्छ वि यों ने सुना-'भगवान् वैशालीमें आये हैं ०१ तव वह लिच्छवी ० सुन्दर वैशालीसे निकले । उनमें कोई कोई लिच्छवि नीले-नील-वर्ण नील-वस्त्र नील- अलंकारवाले थे। कोई कोई लिच्छवि पीले-पीतवर्ण ० थे। ० लोहित (लाल) । ० अवदात (सफेद) छ । अम्वपाली गणिकाने तरुण तरुण लिच्छवियोंके धुरोंसे धुरा, चक्कोंसे चक्का, जूयेसे जूआ टकराया । उन लिच्छवियोंने अम्बपाली गणिकासे कहा- "जे ! अम्बपाली ! क्यों तरुण तरुण (= दहर) लिच्छवियोंके धुरोंसे धुरा टकराती है । ०" "आर्यपुत्रो ! क्योंकि मैंने भिक्षुसंघके साथ भगवान्को कलके भोजनके लिये निमंत्रित किया है।" "जे अदपाली ! सौ हज़ारसे नी इस भात (=भोजन) को (हमारे लिये) दे दे।" "आर्यपुत्रो ! यदि वैशाली देश (जनपद) भी दो, तो भी इस महान् भातको न दूंगी।" तद उन लिच्छवियोंने अंगलियाँ फोळी- "अरे ! हमें अम्बिका ने जीत लिया, अरे ! हमें अम्बिकाने वंचित कर दिया।" तद वह लिच्छवी जहाँ कोटिग्राम था, वहां गये । भगवान्ने दूरले ही लिच्छवियोंको आते देखा। देरकार निशुओंको आमंत्रित किया- यानोंपर आस्द 0