पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९३

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०८० ] ३-महावग्ग [ ६४७ कार, वज्जियोंके रोकने के लिये नगर बना रहे हैं । यहाँ आनन्द ! मैंने दिव्य अमानुप नेत्रसे देखा- कई हजार देवता यहाँ पाटलि-गाममें वारतु (घर, निवास) ग्रहण कर रहे हैं । जिस प्रदेशमें महा- शक्ति-शाली (=महेसक्ख) देवता वास ग्रहण कर रहे हैं, वहाँ महा-शक्ति-शाली राजाओं और राज- महामात्योंका चित्त, घर बनाने को लगेगा । जिस प्रदेगमें मध्यम देवता वास ग्रहण कर रहे हैं, वहाँ मध्यम राजाओं और राज-महामात्योंका नित्त घर बनाने को लगेगा । जिस प्रदेगमें नीत्र देवता०, वहाँ नीच राजाओं० । आनन्द ! जितने भी आर्य-आयतन ( = आयकि निवास ) हैं, जितने (भी) वणिक्-पथ (=व्यापार-मार्ग) हैं। (उनमें) यह पाट लि-पुत्र पुट-भेदन ( मालकी गाँठ जहाँ तोळी जाय) अग्र (प्रधान)-नगर होगा । पाटलि-पुत्रके तीन अन्तराय (=विघ्न) होंग, आग, पानी, और आपसकी फूट ।" तव मगध-महामात्य सुनी थ और वर्प का र जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये । जाकर भगवान् के साथ संमोदनकर... एक ओर खळे हुए...भगवान्मे बोले- "भिक्षु-संघके साथ आप गौतम हमारा आजका भात स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब० सुनीथ और वर्णकारने भगवान्की स्वीकृति जानकर, जहाँ उनका आवसथ (=डेरा) था, वहाँ गये । जाकर अपने आवसथमें उत्तम खाद्य-भोज्य तैयार करा (उन्होंने) भगवान्को समयकी सूचना दी...। तब भगवान् पूर्वाह्न समय पहिनकर, पात्र-चीवर ले भिक्षुसंघके साथ जहाँ मगध-महामात्य सुनीथ, और वर्षकारका आवसथ था, वहाँ गये; जाकर विछे आसनपर बैठे । तब सुनीय, वर्षकारने बुद्ध-सहित भिक्षुसंघको अपने हाथसे उत्तम खाद्य-भोज्यसे संतपित-संप्रवारित किया । तब० सुनीय वर्षकार, भगवान्के भोजनकर पात्रसे हाथ हटा लेनेपर, दूसरा नीचा आसन लेकर, एक ओर बैठ गये । एक ओर बैठे हुये मगध-महामात्य सुनीथ, वर्पकारको भगवान्ने इन गाथाओंसे (दान-) अनु- मोदन किया- "जिस प्रदेश (में) पंडित पुरुष, शीलवान्, संयमी । ब्रह्मचारियों को भोजन कराकर वास करता है ॥१॥ वहाँ जो देवता हैं, उन्हें दक्षिणा (दान)-भाग देनी चाहिये । यह देवता पूजित हो पूजा करती हैं । मानित हो मानती हैं ॥ २॥ तव (वह) औरस पुत्रकी भाँति उसपर अनुकम्पा करती हैं। देवताओंसे अनुकम्पित हो पुरुष सदा मंगल देखता है ॥ ३॥" तव भगवान् सुनीथ और वर्षकारको इन गाथाओंसे अनुमोदनकर, आसनसे उटकर चले गये। उस समय०सुनीथ, वर्षकार भगवान्के पीछे पीछे चल रहे थे—'श्रमण गौतम आज जिस द्वारसे निकलेगा, वह गौ त म द्वा र... होगा। जिस तीर्थ (=घाट) से गंगानदी पार होगा, वह गौ त म ती र्थ.. होगा । तब भगवान् जिस द्वारसे निकले, वह गौतम द्वार...हुआ । भगवान् जहाँ गंगा-नदी है, वहाँ गये । उस समय गंगा करारों तक भरी, करारपर बैठे कौवेके पीने योग्य थी। कोई आदमी नाव खोजते थे, कोई० वेळा (=उलुम्प) खोजते थे, कोई० कूला (=कुल्ल) वाँधते थे । तव भगवान्, जैसे कि बलवान् पुरुष समेटी वाँहको (सहज ही) फैला दे, फैलाई बाँहको समेट ले, ऐसे ही भिक्षुसंघके साथ गंगानदीके इस पारसे अन्तर्धान हो, परले तीरपर जा खळे हुए । भगवान्ने उन मनुष्योंको देखा, कोई कोई नाव खोज रहे थे। तब भगवान्ने इस