पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९८

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६०५।२ ] चीज़ोंके रखनेका स्थान [ २४५ वैठ गया। एक ओर बैठे हुये सिंह सेनापतिको भगवान्, धार्मिक कथासे संदर्शन करा.,आसनसे उठकर चल दिये। (९) अपने लिये मारे मांसको जान बूझकर खाना निपिद्ध तव भगवान्ने इसी संबंध में इसी प्रकरणमें धार्मिक-कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! जान बूझकर (अपने) उद्देश्यसे बने मांसको नहीं खाना चाहिये । जो खाये उसे दुक्क ट का दोप हो । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ (अपने लिये मारे को) देखे, सुने, संदेह-युक्त- इन तीन बातोंसे शुद्ध मछली और मांस (के खाने) की।" IIO F५-संघारासमें चीज़ों के रखने के स्थान (१) दुर्भिक्षके समयके विधान सुभिक्ष में निपिद्ध उस समय वै शा ली सुभिभ थी । सुंदर शस्योंवाली थी। वहाँ भिक्षा पाना सुलभ था । 'उछसे भी यापन करना सुकर था। तव भगवान्को एकांतमें स्थितहो विचार-मग्न होते समय भगवान्के दिलमें यह ख्याल पैन हुआ—जो मैंने दुर्भिक्षः दुःशस्यके समय (जवकि) भिक्षा मिलनी मुश्किल है भिक्षुओंके लिये भीतर रक्खे भीतर पकाये और अपने हाथ से पकाये, लेन-देन, वहाँले लाये, भोजनसे पहिलेका लिया, वनका, पुष्करिणीका—की अनुमति दी है भिक्षु आजभी वया उनका सेवन करते हैं ?' तव भगवान्ने सायंकाल एकान्त-चिंतनसे उठ आयुप्यमान् आ नं द को संवोधन किया- "आनंद ! जो मैंने भिक्षुओंको दुर्भिक्षमें अनुमति दी-०; क्या आजभी भिक्षु उनका सेवन करते हैं ?" "( हाँ ) सेवन करते हैं भन्ते !" तव भगवान्ने इसी संबंध में इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! जो मैंने दुर्भिक्ष ० में अनुमति दी-भीतर रक्खे ० के सेवन करनेकी, उन्हें मैं आजसे निपिद्ध करता हूँ। भिक्षुओ! भीतर रक्खे ० को नहीं सेवन करना चाहिये । जो सेवन करे उसको दुवकटवा दोप हो। और भिक्षुओ ! 'वहाँसे लाये', ० और पुष्करिणीके भोजनको कर लेनेपर ० नहीं भोजन करना चाहिये । जो भोजन करे उसे धर्मानुसार (दंड) करना चाहिये ।"III (२) चीजोंके रखनेका स्थान (=कल्प्यभूमि ) चुनना उस समय देहातके लोग बहुतसा नमक, तेल, तंडुल और खाद्य (-सामग्री)को गाळियोंमें ख आगामने वाहरवे हातेमें शकटको उलटकर ( यह सोचकर ) टहरे रहते थे कि जब वारी मिलेगी तो भोज देंगे । और (उस समय) महामेघ उठा हुआ था । तब वह लोग जहाँ आयुप्मान् आ नं द थे। वहां गये । जाकर आयुष्मान् आनंदने वोले- "भन्ते आनन्द ! हम बहुत सा नमक, तेल, तडुल और खाद्य ( सामग्री )को गाळियोंमें रख आरामने वाहरके हातेमें शकटको उलटकर ( यह मोचकर ) ठहरे हैं कि जब वारी मिलेगी तो भोज देंगे। और (न समय ) महामेघ उठा हुआ है। भन्ते आनन्द ! हमें कैसा करना चाहिये?" तद आयुष्मान् आनन्दने नगदान्ने यह बात कही ।- पण चुनचुनदार खाना।

  • देखो (६६३१९) दृष्ट २२७ ।