पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२९९

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२४६ ] ३-महावग्ग [६१ "तो आनन्द ! संघ आखिर वाले विहारको कल्प्य भूमि' होनेका ठहराव करके वहां रखवावे । संघ जिस विहार या अड्ड यो ग (= अटारी ), प्रासाद या हर्म्य या गुहा को चाहे ( उसे कल्प्यभूमि बनावे )।" II 2 "और भिक्षुओ ! इस प्रकार ठहराव करना चाहिये-चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- क. ज्ञप्ति--"भन्ते ! संघ मेरी मुने, यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाले विहाको कल्प्यभूमि होनेका ठहराव करे—यह सूचना है ख. अ नु श्रा व ण-"भन्ते ! संघ मेरी मुने, संघ इस नाम वाले विहारको कन्ग्यभूमि होने का ठहराव करता है । जिस आयुष्मान्को इस नाम बाले विहारके कल्प्यभूमि होनेका ठहराव स्वीकार है वह चुप रहे, जिसको नहीं पसंद है वह बोले ० । संघको इस नाम वाले विहारका कल्प्यभूमि होना स्वीकार है। ग. धा र णा--"संघको पसंद है इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे बारण करता हूं।" (३) कल्प्य-भूमिमें भोजन नहीं पकाना उस समय उसी ठहरावकी हुई कल्प्यभूमिमें यवागू पकाते थे, भात पकाते थे, सूप तैयार करते थे, मांस कूटते थे, काठ फाळते थे । रातके भिनसारको उठकर भगवान्ने (उस) ऊचे शब्द, महाशब्द, कौवोंके रवके शब्दोंको सुना । सुनकर आयुप्मान् आनन्दको संबोधित किया- "आनन्द ! क्या है यह ऊँचा शब्द, महाशब्द • ?" "भन्ते ! इस समय लोग उसी ठहराव की हुई कल्प्यभूमिमें यवागू पका रहे हैं । उसोका भगवान् यह ऊँचा शब्द ० है।" तव भगवान्ने इसी संबंध में इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! ठहरावकी गई कल्प्यभूमिमें भोजन नहीं बनाना चाहिये । जो भोजन करे उसे दुक्क ट का दोष हो । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ तीन कल्प्य-भूमियों की-खंभोंपर उठाई, गाय वैठनेकी, गृहस्थोंकी ।" II3 (४) चार प्रकारको कल्प्य भूमियाँ उस समय आयुष्यमान् य शो ज बीमार थे। उनके लिये दवाइयाँ लाई गई थीं। उन्हें भिक्षु बाहर ही रखते थे और चूहे आदि भी उन्हें खा डालते थे, चोर भी चुरा ले जाते थे। भगवान्से यह बात कही।- “भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ ठहराव की हुई कल्प्यभूमिके उपयोगकी। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ चार प्रकारकी कल्प्यभूमियोंकी-खंभोंपर उठाई, गाय बैठनेकी, गृहस्थोंकी और ठहराव- की गई।" II4 सिंह भाणवार समाप्त ॥४॥ F६-गोरस और फल-रसका विधान (१) मेंडक श्रेष्ठी और उसके परिवारकी दिव्यविभूतियाँ १-उस समय भद्दिय (=भद्रिका) नगरमें में ड क (नामक) गृहपति ( वैश्य) रहता - १ सामान रखनेका स्थान, भंडार ।