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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३००

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६६।२] बिम्बिसार द्वारा परीक्षा [ २४७ था। उसका ऐसा दिव्यवल था-सिरसे नहाकर अनाजके घरको सम्मार्जित करवा (जब वह) द्वार पर बैठता था तो आकाशसे अनाजकी धारा गिरकर अनाजके घर (=धान्यागार) को भर देती थी। और (उसकी) भार्याका यह दिव्यबल था कि एक ही आ ढ़ की भर (चावलकी) हाँळी पका और एक वर्तन भर सूप (=दाल) पका दास, काम करनेवाले (सभी) पुरुषोंको भोजन परस देती थी और जब तक वह न उठती तब तक वह खतम नहीं होता था। (उसके) पुत्रका यह दिव्यवल था कि एक ही हज़ार (मुद्रा) की थैलीको लेकर दास और नौकर (सभी) पुरुषोंके छ मासके वेतनको देता था और वह जव तक उसके हाथमें रहती खतम न होती थी। (उसकी) पतोहूका यह दिव्यवल था कि एक ही चार द्रोण' भरके एक टोकरेको लेकर दास और नौकर (सभी) पुरुषोंके छ मासके भोजनको दे देती थी और जव तक वह न उठती तब तक वह खतम न होता। (उसके) दासका इस प्रकारका दिव्यवल था कि एक हलसे जोतते वक़्त सात हराइयाँ (सीताएँ) उत्पन्न होती थीं। (२) विम्बिसार द्वारा परीक्षा मगधराज सेनिय वि म्बि सा र ने सुना कि हमारे राज्यके भ द्दि य नगरमें में ड क गृहपति रहता है। उसका ऐसा दिव्यबल है ० सात हराइयाँ उत्पन्न होती हैं। तव मगधराज सेनिय बिम्बिसारने एक सर्वार्थ क म हा मा त्य (प्राइवेट सेक्रेटरी) को संबोधित किया- "भणे ! हमारे राजके भ हि य नगरमें मेंडक गृहपति रहता है ० । जाओ भणे! पता लगाओ तो तुम्हारा देखा मेरा अपने देखा जैसा है।" "अच्छा देव !"- (कह) वह महामात्य मगधराज सेनिय बिम्बिसारको उत्तर दे चतुरंगिनी सेनाके साथ जिधर भद्दिया नगर है उधरको चला । क्रमशः जहाँ भ हि या थी और जहाँ मेंडक गृहपति था वहाँ पहुँचा । पहुँचकर मेंडक गृहपतिसे यह वोला- "गृहपति ! मुझे राजाने आज्ञा दी है कि 'भणे ! हमारे राज्यके भ हि य नगरमें में ड क गृहपति रहता है • तुम्हारा देखा मेरा अपने देखा जैसा है' । गृहपति तुम्हारे दिव्यवलको देखना चाहता हूँ।" तव मेंडक गृहपति सिरसे नहाकर अनाजके घरको सम्मार्जित करवा द्वारपर बैठा तो आकाशसे अनाजकी धाराने गिरकर अनाजके घरको भर दिया। "गृहपति ! तेरे दिव्यवलको देख लिया। तेरी भार्याके दिव्यबलको देखना चाहता हूँ।" तव मेंडक गृहपतिने भार्याको आज्ञा दी- "तो तू इस चतुरंगिनी सेनाको भोजन परोस।" तब में ड क गृहपतिकी भार्याने एकही आढ़क भर (चावलकी) हाँळी और एक वर्तन भर सूप (दाल) पका, चतुरंगिनी सेनाको भोजन परस दिया और जब तक वह न उठी तब तक वह खतम न हुआ। "गृहपनि तेरी भार्याके दिव्यवलको देख लिया, (अव) तेरे पुत्रके दिव्यवलको देखना चाहता हूँ।" तव मेंडक. गृहपतिने पुत्रको आज्ञा दी- "तो तू चतुरंगिनी नेनाको छ मासका वेतन दे।" तव मेंडक गृहपति पुत्रने एक ही हज़ारके तोळेको लेकर चतुरंगिनी सेनाको छ मासका वेतन दे दिया और वह जब तक उसके हाथमें रहा खतम न हुआ। " कुडद = १ प्रस्थ, ४ प्रस्थ१ आढक., ४ आटक=१ द्रोण, ४ द्रोण-१ माणी, ४ माणी-१ सारी (-अभिधानप्पदीपिका) ।