पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०६

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कथा ६९ ] पेयोंका विधान [ २५३ तव रोज मल्ल ने जहाँ वह बन्द-द्वार विहार था, वहाँ निःशब्द हो धीरे धीरे जाकर, आलिन्द- में घुसकर, खाँसकर जंजीर खटखटाई। भगवान्ने द्वार खोल दिया। तब रोजमल्ल विहारमें प्रवेशकर भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे हुये रोजमल्लको भगवान्ने आनुपूर्वी ....~-० रोजमल्लको उसी आसनपर विरज विमल धर्म-चक्षु उत्पन्न हुआ—'जो कुछ उत्पन्न होनेवाला है, वह सब विनाश होनेवाला है।' तब रोज मल्लने दृष्टधर्म हो० भगवान् से कहा- अच्छा हो, भन्ते ! अय्या (=आर्य -भिक्षु लोग) मेरा ही चीवर, पिंड-पात (= भिक्षा), शयनासन (आसन), ग्लान-प्रत्यय-भेपज्य-परिप्कार (=दवा-पथ्य) ग्रहण करें, औरोंका नहीं।" "रोज तेरी तरह जिन्होंने अपूर्णज्ञान और अपूर्ण-दर्शनसे धर्मको देखा है, उनको ऐसा ही होता है-'क्या ही अच्छा हो, अय्या मेरा ही० ग्रहण करें, औरोंका नहीं। तो रोज ! तेरा भी ग्रहण करेंगे, और दूसरोंका भी।” उस समय कु सी ना रा में उत्तम भोजोंका तांता लग गया था। तब बारी न मिलनेसे रोज मल्लको यह हुआ--'क्यों न मैं परोसनेको देखू, जो वहाँ न हो उसे तैयार कराऊँ।' तव परोसनेको देखते समय रोजमल्लने दो चीज़ोंको नहीं देखा--डाक ( शाक) और खाद्य पीणको । तब रोजमल्ल जहाँ आयुप्मान् आनन्द थे, वहाँ गया। जाकर आयुष्मान् आनंदसे यह बोला- "भन्ते ! बारी न मिलनेसे मुझे यह हुआ-० । तव परोसनेको देखते समय मैंने दो चीजोंको नहीं देखा--० । यदि, भन्ते ! आनन्द ! मैं डाक और खाद्य पीणको तैयार कराऊँ, तो क्या भगवान् उसे स्वीकार करेंगे?" "तो रोज ! भगवान्से यह पूलूंगा।" तब आयुप्मान् आनंदने भगवान्से यह बात कही "तो आनन्द ! (रोज) तैयार करावे।" "तो रोज! तैयार कराओ।" तव रोजमल्ल उस रातके बीत जानेपर, बहुत परिमाणमें डाक और खाद्य पीण तैयार करा, भगवान्के पास ले गया।- "भन्ते ! भगवान डाक और खाद्य पीणको स्वीकार करें।" "तो रोज! भिक्षुओंको दे।" भिक्षु लेनेमें हिचकिचा रहे थे, और न लेते थे। "भिक्षुओ! ग्रहण करो, और खाओ।" नव रोजमल्ल बुद्ध (-सहित) भिक्षु-संघको अपने हाथसे बहुतसे डाक और खाद्य पीण द्वारा संत- पित-संप्रवान्तिकर, भगवान्के हाथ धो (पात्रसे) हाथ खींच लेनेपर एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे रोजमल्लको भगवान् धार्मिक कथा द्वारा.. समुत्तेजित-संप्रर्पितकर आसनसे उठ चल दिये। (८) डाक और पीणकी अनुमति तब भगवान्ने इनी नंबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया।- "भिक्षओ ! अनुनति देता हूँ, सभी डाकों और नमी खाद्य पीण (के खाने) की।" II9 (९) भूत पूर्व हजाम भिक्षुको हजामतका सामान लना निपिद्ध तद भगवान् तु नी ना ना में इच्छानुसार विहारकर०, जहाँ आ तु मा थी, वहाँ चारिकाके लिये यो र ८४ ।