पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०७

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३-महावग्ग २५४ ] [ $991?? चल दिये । उस समय आतुमामें बुढ़ापेमें प्रबजित हुआ, भूत-पूर्व हजाम (-नहापित) एक भिक्षु निवास करता था। उसके दो पुत्र थे. (जो) अपनी पंडिताई और कर्ममें सुन्दर, प्रतिभागाली, दक्ष, शिल्पमें परिशुद्ध थे। उस वृद्ध-प्रबजित (: बुढ़ापेमें प्रत्र जित) ने सुना कि, भगवान्० आतुमा आ रहे हैं। तब उस वृद्ध-प्रबजितने दोनों पुत्रोंगे कहा- "तातो ! भगवान् • आतुमामें आ रहे हैं। तातो ! हजामतका सामान लेकर नाली, झोलीके साथ घर घरमें फेरा लगाओ, (और) लोन, तेल, तंडुल और बाद्य (पदार्थ) संग्रह करो । आनेपर भग- वान्को यवागू (= खिचळी) दान देंगे।' "अच्छा तात !" बृद्ध-प्रबजितको कह, पुत्र हजामतका सामान ले० लोन, तेल, तंडुल, खाद्य संग्रह करते घूमने लगे। उन लळकोंको सुन्दर, प्रतिभा-गंपन्न देवकर, जिनको (और) न कगना था, वह भी कराते थे, और अधिक देते थे। तब उन लनकोंने बहुत मा लोन भी, तेल भी, तंडुल भी, खाद्य भी संग्रह किया। भगवान् क्रमशः चारिका करते, जहाँ आतुमा थी, वहाँ पहुँचे। वहाँ आ तु मा में भगवान् भु सा गा र में विहार करते थे। तब वह बृद्ध-प्रबजित उस रातके बीत जानेपर, बहुत मा यवाग तैयार करा, भगवान्के पास ले गया-"भन्ते ! भगवान् मेरी विचळी स्वीकार करें"।...। भगवान्ने उस वृद्ध-प्रव्रजितसे पूछा- “कहाँसे भिक्षु ! यह खिचळी है ?" उस वृद्ध प्रव्रजितने भगवान्से (सव) बात कह दी। भगवान्ने धिक्कारा। "मोघ-पुरुप (=नालायक) ! (यह तेरा कहना) अनुचित-अन्-अनुलोम-अ-प्रतिरूप, श्रमण- कर्तव्यके विरुद्ध, अविहित अ-कप्पिय ( अ-करणीय) है। कैसे तू मोघ-पुरुष ! अविहित (चीज) के (जमा करनेके लिये) कहेगा?..." . .भिक्षुओंको आमंत्रित किया- "भिक्षुओ ! भिक्षुको निपिद्ध (=अ-कप्पिय) के लिये आज्ञा (=समादपन) नहीं देनी चाहिये। जो आज्ञा दे, उसको 'दुष्कृत (=दुक्कट्ट) की आपत्ति । और भिक्षुओ! भूत-पूर्व हजामको हजा- मतका सामान न ग्रहण करना चाहिये । जो ग्रहण करे, उसे दुक्कट्टकी आपत्ति ।" 120 १४ -श्रावस्ती तव भगवान् आ तु मा में इच्छानुसार विहारकर, जिधर श्रावस्ती थी, उधर वारिकाके लिये चल दिये । क्रमशः चारिका करते, जहाँ श्रा व स्ती थी, वहाँ पहुँचे। वहाँ श्रावस्तीमें भगवान् अनाथ- पिंडिकके आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय श्रावस्तीमें बहुत सा खाद्य फल था। भिक्षुओंने.... भगवान्से यह बात कही। “अनुमति देता हूँ, सब खाद्य फलोंके लिये।" I2I (१०) सांघिक खेत बीज आदिमें नियम उस समय संघके बीजको व्यक्तिके (=पौद्गलिक) खेतमें रोपते थे, पौद्गलिक वीजको संघके खेतमें रोपते थे। भगवान्से यह वात कही।- “संघके बीजको यदि पौद्गलिक खेतमें बोया जाय, तो (दसवाँ) भाग' देकर भोग करना चाहिये। पौद्गलिक बीजको यदि संघके खेतमें वोया जाये, तो भाग देकर परिभोग करना चाहिये।" 122 (११) विधान या निपेध न कियेके वारेमें निश्चय ."जो मैंने भिक्षुओ ! 'यह नहीं विहित है' (कहकर) निपिद्ध नहीं किया, यदि वह १"दसवाँ भाग देना यह जम्बूद्वीप (भारत) में पुराना रवाज (=पोराण-चारित्तं) है। इसलिये दस भागमें एक भाग भूमिके मालिकोंको देना चाहिये ।" (--अट्ठकथा)