पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०८

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६६६।१२ ] किस कालका लिया भोजन किस काल तक विहित [ २५५ निषिद्ध (=अ-कप्पिय-हराम) के अनुलोम हो, और विहित (=कप्पिय-हलाल)का विरोधी, (तो) वह तुम्हें हलाल नहीं है । भिक्षुओ ! जिसे मैंने 'यह विहित नहीं है' (कह कर) निपिद्ध नहीं किया, यदि वह विहितके अनुलोम है, और अविहितका विरोधी, (तो) वह तुम्हें विहित है। भिक्षुओ ! जिसे मैंने 'यह कप्पिय है' (कहकर) अनुना नहीं दी, वह यदि अविहितका अ-विरोधी है, और विहितका विरोधी, तो वह तुम्हें विहित नहीं है । भिक्षुओ! जिसे मैंने 'यह विहित है' (कहकर) अनुज्ञा नहीं दी, वह यदि विहितके अनुलोम है, और अविहितका विरोधी, तो वह तुम्हें विहित है।” 123 (१२) किस कालका लिया भोजन किस काल तक विहित तव भिक्षुओंको यह हुआ--'क्या उतने कालवालेसे याम भर कालवाला विहित है, या नहीं? उतने कालवालेसे सप्ताह भर कालवाला विहित है, या नहीं ? उतने कालवालेसे जीवन भर वाला विहित है या नहीं? याम (=पहर) भर कालवालेसे सप्ताह भर कालवाला०? यामभर कालवालेसे जीवन भर वाला ? सप्ताह भर कालवालेसे जीवन भर वाला०?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! उतने कालवालेसे, उसी दिन ग्रहण किया पूर्वाह्नमें विहित है, अपराह्णमें नहीं। भिक्षुओ ! उतने कालवाले सप्ताह भर कालवाला उसी दिन ग्रहण किया पूर्वाह्णमें विहित है, अपराह्ण- में नहीं। भिक्षुओ! उतने कालवाले (=यावत्कालिक)से जीवन भर वाला उसी दिन ग्रहण किया होने पर पहर भर विहित है, पहर बीत जानेपर नही। भिक्षुओ! सप्ताह भर कालवालेसे जीवन भर वाला उसी दिन ग्रहण किया होनेपर सप्ताह भर विहित है, सप्ताह बीत जानेपर नहीं विहित है।" 124 ! सज्जक्वन्धक समाप्त ॥६॥ ... !