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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३१०

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७१।३ ] कठिनका प्रसारण [ २५७ विचरना; (२) बिना ( तीनों चीवरोंको) लिये विचरण करना; ( ३ ) गणके साथ भोजन (करना), (४) इच्छानुसार चीवर ( लेना ); (५) और जो वहाँ चीवर मिलते वक्त होगा वह उसका होगा। कठिनके लिये एकत्रित होजानेपर भिक्षुओ ! यह पाँच बातें तुम्हें विहित होंगी। 2 और भिक्षुओ ! कठिनके लिये इस तरह सम्मंत्रण (ठहराव) करना चाहिये; चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-- क. ज्ञप्ति--'भन्ते ! संघ मेरी सुने । यह संघके लिये क ठि न (बनाने )का कपळा प्राप्त हुआ है । यदि संघ उचित समझे तो इस कठिनके कपळेको इस नामवाले भिक्षुको पहिननेके लिये दे'—यह यूचना है। ख. अनुश्रावण-'(१) भन्ते ! संघ मेरी सुने । संघको यह क ठिन का कपळा मिला है । संघ इस कठिनके कपळेको अमुक नामवाले भिक्षुको पहनने के लिये दे रहा है । जिस आयुष्मान्को संघका इस क ठि न के कपळेको अमुक नामवाले भिक्षुको पहिननेके लिये देना पसंद हो वह चुप रहे, जिसको पसंद न हो वह बोले । (२) दूसरी बार भी० । (३) तीसरी बार भी० । ग. धारणा 'संघने इस कठिनके कपळेको अमुक नामवाले भिक्षुको पहननेको दे दिया। संघको पसंद है इसलिये चुप है'-ऐसा मैं इसे समझताहूँ। (३) कठिनका प्रसारण और न प्रसारण "भिक्षुओ ! इस प्रकार क ठिन का प्रसारण होता है । कैसे भिक्षुओ ! क ठिन का प्रसारण नहीं होता ? उपछने मात्रसे नही क ठि न का आच्छादन होता । धोने मात्रसे नहीं; चीवरके फैलाने मात्र से नहीं०, छेदन मात्रसे नहीं०, वंधन मात्रसे नहीं०, लपेटने मात्रसे नहीं ० कं डू स (= कुंदी) करने मात्रने नहीं०, हवाके रुखकी ओर करने मात्रसे नहीं०, परिभंड ( आळ) करने मात्रसे नहीं०, चौपेता करने मात्रने नहीं०, कम्वलके मर्दन मात्रसे नहीं०, चिन्ह कर चुकनेसे ही नहीं०, ( उसके संबंधवी )कथा करनेसे ही नहीं०, कुक्कू ( = कुछ समयका ) किये होनेपर ही नहीं०, जमा किये होनेपर नहीं०, छोळने लायक होनेपर नहीं, अ क ल्प्य (= अ-विहित ) कियेपर नहीं०, संघाटीसे अलग होनेपर नहीं०, न उत्तरासंगसे अलग होनेपर०, न अन्तरवासकसे अलग होनेपर०, न पाँच या पाँच के अधिक से अलग होनेपर, उसी दिन कटा होनेसे तथा मंडलिकायुक्त होनेसे०, न व्यक्तिका पहना होनेने अलग०, ठीक तरहसे क टि न पहना गया हो और यदि उसे सीमासे वाहर स्थित हो अनुमोदन करे तो इस प्रकार भी कठिनका आच्छादन नहीं होता । भिक्षुओ ! इस प्रकार कठिनका अ-प्रसारण 1 . -1 होता है । "भिक्षुओ ! किस प्रकार कठिनका प्रसारण होता है ? विना पहने क टि न का प्रसारण होता 1. । बिना पहने वन्त्रमें, वस्त्र, रास्तेके चीथळेमें, दुकानपर पळे पुराने कपळेमें, न लांछन विसमें , जिनके बारेमें बात न चलाई गई हो वैनमें०, न कुक्कू (= कुछ ममयका) कियेमें, न एक- त्रित किय०, न डोळे हुएम०, न क ल्प्य (=विहित) कियेमें०, संघाटीने क ठि न आच्छादित होता है, उतरावंगने, अन्तरदासकः, पांचो या पत्रिके अतिरिक्तने उनी दिन कटे तथा मंडलिका युक्त्त विने कटिन आच्छादित होता है, व्यक्तिके आच्छादित करने कठिन आच्छादित होता 1, परिन अछी तरहन आच्छादित हो और उमे मीमामें स्थित हो अनुमोदन करे तो इम प्रभार भी किन अादिन होता है। निओ ! इन प्रकार कठिन प्रसारित (आस्थत )