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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२६

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८१११ ] वुद्धकी अस्वस्थता [ २७३ "आवुस जीवक ! तथागतका शरीर दोप-ग्रस्त है, जुलाब लेना चाहते हैं।" "तो भन्ते ! आनन्द ! भगवान्के शरीरको कुछ दिन स्निग्ध करें (=चिकना करें)।" तब आयुष्मान् आनन्द भगवान्के शरीरको कुछ दिन स्नेहित कर...जाकर जीवक...को बोले- - "आवुस जीवक ! तथागतका शरीर अब स्निग्ध है, अब जिसका समय समझो (वैसा करो)।" तव जीवक कौमार-भृत्यको यह हुआ- 'यह मेरे लिये योग्य नहीं, कि मैं भगवान्को मामूली जुलाब दूं।' (इसलिये) तीन उत्पल- हस्तको नाना औषधोंसे भावितकर,...जाकर भगवान्को एक उत्पलहस्त (चम्मच) दिया- "भन्ते ! इस पहिले उत्पलहस्तको भगवान् सूं, यह भगवान्को दस वार जुलाब लगायेगा। ..इस दूसरे उत्पलहस्तको सूंघे० ।...इस तीसरे उत्पलहस्तको भगवान् सूंघे। इस प्रकार भग- वान्को तीस जुलाव होंगे।" जी व क...भगवान्को तीस जुलाबके लिये औषध दे, अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चल दिया। तब जीवकको बळे दर्वाजेसे निकलनेपर यह हुआ—'मैंने भगवान्को तीस जुलाब दिया। तथागतका शरीर दोष-ग्रस्त है, भगवान्को तीस जुलाब न होगा, एक कम तीस जुलाब होगा। जब भगवान् जुलाब हो जानेपर नहायेंगे, तब भगवान्को एक और विरेचन होगा। तब भगवान्ने जीवकके चित्तके वितर्क को.. .जानकर, आयुष्मान् आनन्दसे कहा- "आनन्द ! जीवकको वळे दर्वाजेसे निकलनेपर० । इसलिये आनन्द ! गर्म जल तैयार करो।" "अच्छा भन्ते !" कह. . .आयुष्मान् आनन्दने जल तैयार किया। तब जीवक...जाकर 'भगवान्से बोला- "मुझे भन्ते ! बळे दर्वाजेसे निकलनेपर० । भन्ते ! स्नान करें सुगत ! स्नान करें।" तब भगवान्ने गर्म जलसे स्नान किया। नहानेपर भगवान्को एक (और) विरेचन हुआ। इस प्रकार भगवान्को पूरे तीस विरेचन हुए। तब जीवक. . .ने भगवान्से यह कहा- "जब तक भन्ते ! भगवान्वा शरीर स्वस्थ नहीं होता, तब तक मैं जूस पिंड-पात (दूंगा)।" भगवान्का शरीर थोळे समयमें ही स्वस्थ हो गया। तव जीवक...उस शिवि' के दुशाले...को ले, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठा । एक ओर बैठे ..ने भगवान्से यह कहा- "मैं भन्ते ! भगवान्से एक वर मांगता हूँ।" "जीवक! तथागत वरके परे हो गये हैं।" "भन्ते ! जो युक्त है, जो निर्दोप है।" "बोलो, जीदक !" "भन्ते ! भगवान् पांमुकूलिक' (=लत्ताधारी) हैं, और भिक्षु-संघ भी। भन्ते ० मुझे यह मिदि का दुमाला जोळा, राजा प्रद्यो त ने भेजा है । भन्ते ! भगवान् मेरे इस गिवि (=देग) के दुगाले जीवव...... ! दर्तमान सीदी (दिलोचिस्तानके आस पासका प्रदेश) या शोरकोट (पंजाब) के आस पास- पा प्रदेशा। ६. "भगवान्दे. हत्त्व-प्राप्निले. . .बीस वर्ष तक किमी (भिक्षु)ने गृह-पति-चीवर धार नहीं दिया । म पांगुलिक हो रहे ।" (-अकथा) ।