पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७२ ] ३-महावग्ग [ ८६११ कौमार-भृत्य राजाके पास घी ले गया-'देव ! कपाय पियें।' तब जीवक.. राजाको घी पिलाकर हथि-सारमें जा भद्रवतिका हथिनीपर (सवार हो), नगरने निकल पळा। तब राजा प्रद्योतको उस पिये घीसे उबांत हो गया। तब राजा प्रद्योतने मनुप्योंने कहा- "भणे ! दुष्ट जीवकने मुझे घी पिलाया है, जीवक वैद्यको ढूंढो।" "देव ! भद्रवतिका हथिनीपर नगरसे बाहर गया है।" उस समय अमनुप्यसे उत्पन्न का क नामक राजा प्र द्यो त का दास (दिनमें) साठ योजन (चलने) वाला था। राजा प्रद्योतने काक दासको हुकुम दिया- "भणे काक! जा जीवक वैद्यको लौटा ला-'आचार्य ! राजा तुम्हें लौटाना चाहते हैं।' भणे काक ! यह वैद्य लोग बळे मायावी होते हैं, उस (के हाथ) का कुछ मत लेना।" तव काकने जीवक कौमार-भृत्यको मार्गमें की गा म्बी में कलेवा करते देखा। दास काकने जीवक...से कहा- "आचार्य ! राजा तुम्हें लौटवाते हैं।" "ठहरो भणे काक ! जब तक खा लूं। हन्त भणे काक ! (तुम भी) खाओ।" "वस आचार्य ! राजाने आज्ञा दी है-'यह वैद्य लोग मायावी होते हैं, उस (के हाय) का कुछ मत लेना।" उस समय जीवक कीमार-भृत्य नखसे दवा लगा आँवला खाकर, पानी पोता था। तब जीवक ! ..ने काक.. ..से कहा- "तो भणे काक ! आँवला खाओ, और पानी पियो।" तव काक दासने (सोचा) 'यह वैद्य आँवला खा रहा है, पानी पी रहा है, (इसमें) कुछ भी अनिप्ट नहीं हो सकता'-(और) आधा आँवला खाया, और पानी पिया। उसका खाया वह आधा आँवला वहीं (वमन हो) निकल गया। तब काक (दास) जीवक कौमार-भृत्यसे वोला- "आचार्य ! क्या मुझे जीना है ?" "भणे काक ! डर मत, तू भी निरोग होगा, राजा भी। वह राजा चंड है, मुझे मरवा न डाले, इसलिये मैं नहीं लौटूंगा।" (-कह) भद्रवतिका हथिनी काकको दे, जहाँ रा ज गृह था, वहाँको चला। क्रमशः जहाँ राजगृह था, जहाँ राजा. . .विविसार था, वहाँ पहुँचा। पहुँचकर राजा.. बिंबिसारते वह (सब) वात कह डाली। "भणे जीवक ! अच्छा किया, जो नहीं लौटा। वह राजा चंड है, तुझे मरवा भी डालता।" तव राजा प्र द्यो त ने निरोग हो, जी व क कौ मा र-भृत्य के पास दूत भेजा-'जीवक आवें, वर (=इनाम) दूंगा' 'वस आर्य ! देव मेरा उपकार (=अधिकार) याद रखें।' उस समय राजा प्र द्यो त को बहुत सौ हज़ार दुशालेके जोळोंमें अन श्रेष्ठ मुख्य उत्तम प्रवर शिवि (देश) के दुशालोंका एक जोड़ा प्राप्त हुआ था। राजा प्रद्योतने उस शिविके दुशालेको, जीवकके लिये भेजा। तव जीवक कौमार-भृत्यको यह हुआ- "राजा प्रद्योतने मुझे यह शिविका दुशाला जोळा भेजा है। उन भगवान् अर्हत् सम्यक् संबुद्धके बिना या राजा मागध श्रेणिक वि वि सा र के बिना, दूसरा कोई इसके योग्य नहीं है।" उस समय भगवान्का शरीर दोप-ग्रस्त था। तब भगवान्ने आयुष्मान् आ न न्द को संबो- धित किया- "आनन्द तथागतका शरीर दोप-ग्रस्त है, तथागत जुलाब (=विरेचन) लेना चाहते हैं।" आयुष्मान् आनन्द जहाँ जीवक...था, वहाँ...जाकर वोले-