पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२८

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८१२।१] चीवरका बँटवारा [ २७५ ने किस चीवरकी अनुमति दी है, और किसकी नहीं?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ छ तरहके चीवरोंकी-क्षौ म, कपासवाले, कोशेय, कम्बल (-ऊनी), साण (=सनका), और भंग।" 6 (६) नये चीवर के साथ पांसुकूल भो १-उस समय जो भिक्षु गृहस्थों (के दिये नये) चीवरको धारण करते थे वह हिचकिचाते हुए पां सु कू ल (= फेंके हुए चीथळों) को नहीं धारण करते थे—'भगवान्ने एकही तरहके चीवरकी अनुमति दी है, दो की नहीं।' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ गृहस्थोंके नये चीवर धारण करनेवालोंको पांसुकूल धारण करने की भी। मैं उन दोनोंहीसे भिक्षुओ! संतुष्टि (=त्यागीपन) वतलाता हूँ।" 7 २-उस समय बहुतसे भिक्षु को स ल देशमें रास्तेसे जा रहे थे। (उनमेंसे) कोई कोई भिक्षु फें के ची थ ळे के लिये स्मशान में गये और किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंने प्रतीक्षा न की । जो भिक्षु स्मशानमें गये थे उन्हें पां सु कू ल मिले। तव न प्रतीक्षा करनेवाले भिक्षुओंने ऐसे कहा—'आवुसो ! हमें भी हिस्सा दो !' दूसरेने कहा-'आवुसो! हम तुम्हें नहीं देंगे। तुम क्यों नहीं आये ?' भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, इच्छा न होनेपर न प्रतीक्षा करनेवालोंको भाग न देनेकी।" 8 उस समय बहुतसे भिक्षु को स ल देशमें जा रहे थे। (उनमेसे) कोई कोई भिक्षु फेंके चीथळोंके लिये स्मशानमें गये। और किन्हीं किन्हीने प्रतीक्षा की। जो भिक्षु स्मशानमें गये थे उन्हें पां सु कू ल मिले । तब प्रतीक्षा करनेवाले भिक्षुओंने ऐसा कहा—'आवुसो! हमें भी हिस्सा दो !' दूसरोंने कहा- आवुसो ! हम तुम्हें नहीं देंगे। तुम क्यों नहीं आये ?' भगवान्से यह वात कही।- भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ इच्छा न होनेपर भी प्रतीक्षा करनेवालोंको भाग देनेकी ।" उस समय बहुतसे भिक्षु को स ल देशमें रास्तेसे जा रहे थे। कोई कोई भिक्षु पांसुकूलके लिये पहिले स्मशानमें गये और कोई कोई पीछे । जो भिक्षु पांसुकूलके लिये पहले स्मशानमें गये उनको पां सु कू ल मिला। जो पीछे गये उन्हें पां सु कू ल नहीं मिला। उन्होंने ऐसे कहा-'आवुतो ! हमें भी भाग दो !' दूसरोंने उत्तर दिया--'आवुसो ! हम तुम्हें नहीं देंगे! तुम क्यों पीछे आये ?' भगवान्से यह दात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, पीछे आनेवालोंको इच्छा न रहनेपर भाग न देनेकी।" 10 - ६२-संघके कर्मचारियोंका चुनाव (१) चीवरका बँटवारा ---उस समय बहुतने निभु को न ल देशमें रास्तेसे जा रहे थे। वह एक माथही पांनुकूलके किये स्मगान गये। उनमेंने किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंने पांनुकूल पाया, किन्हीं किन्हींने नहीं पाया। मपालेकाले विमान ने कहा-'आबुको ! हमें नी नाग दो। दूसरेने उत्तर दिया-'आबुनो ! रोमागम देने। तुमने क्यों नहीं प्राप्त किया ?' नगवान्ने यह बात कही। ": दुति देता है साथ रहनेवालोंको इच्छा न रहते भी भाग देने की।" II ‘भोगीपालमा बना, अपना का प्रकारके निपने दनाभा यात्रा।