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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३२९

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! - २७६ ] ३-महावग्ग [ <3714 २--उस समय बहुतसे भिक्षु को स ल देशसे रास्तेसे जा रहे थे। वह पण करके स्मशानमें पांसुकूलके लिये गये। किन्हीं किन्हीं भिक्षुओंको पांनुकूल मिला, किन्हीं किन्हींने नहीं पाया । न पानेवाले भिक्षुओंने ऐसे कहा-'आवुसो ! हमें भी भाग दो !'-दूसरोंने उत्तर दिया-'आवुसो! हम तुम्हें भाग न देंगे। तुमने क्यों नहीं प्राप्त किया ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पण करके जानेपर, इच्छा न रहते हुए भी भाग देनेकी ।" 12 (२) चीवर प्रतिग्राहकका चुनाव उस समय लोग चीवर लेकर आराम जाते थे । वहाँ प्रति ग्रा ह क (=ग्रहण करनेवाले) को न पा लौटा लाते थे, और चीवर कम मिला करते थे। भगवान्ने यह बात कही। "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, पाँच गुणोंसे युक्त भिक्षुको चीवर-प्रतिग्राहक त्रुनने की।"- (१) जो न स्वेच्छाचारी हो, (२) जो न द्वेषके रास्ते जानेवाला हो, (३) जो न मोहके रास्ते जानेवाला हो, (४) जो न भयके रास्ते जानेवाला हो, और (५) जो लिये-बे-लियेको जानता हो। 13 और भिक्षुओ इस प्रकार चुनाव (=संमंत्रण) करना चाहिये । पहले (वैसे) भिक्षुसे पूछ लेना चाहिये । पूछ करके चतुर समर्थ भिक्षु-संघको सूचित करे—यदि संघ 'उचित समझे तो अमुक नाम- वाले भिक्षुको चीवर-प्रतिग्राहक चुने-यह सूचना है। ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" (३) चीवर-निदहकका चुनाव उस समय चीवर प्रतिग्राहक भिक्षु चीवरको लेकर वहीं छोड़कर चले जाते थे । चीवर गुम हो जाते थे । भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पाँच गुणोंसे युक्त भिक्षुको ची व र-नि द ह क (=चीवरोंको रखनेवाला) चुननेकी-(१) जो न स्वेच्छाचारी हो०१ ।” 14 (४) भंडार निश्चित करना उस समय ची व र-नि द ह क भिक्षु मंडपमें भी, वृक्षके नीचे भी, निम्ब-कोपमें भी चीवर रख देते थे और उन्हें चूहे और दूसरे कीड़े खा जाते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ भंडागार निश्चित करनेकी । संघ-विहार या अड्ड यो ग (=अटारी) या प्रासाद या हर्म्य या गुहा जिसे चाहे (उसे) भंडागार बनाये ।” IS "और भिक्षुओ! इस प्रकार ठहराव करना चाहिये-चतुर समर्थ भिक्षुसंघको सूचित करे-- पूज्य संघ मेरी सुने । यदि संघको पसंद हो तो इस नामवाले विहारको भंडागार (=भंडार) निश्चित करें-यह सूचना है। ।” (५) भंडारीका चुनाव १–उस समय संघके भंडागारमें चीवर अरक्षित रहते थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पाँच गुणोंसे युक्त भिक्षुको भां डा गा रि क (=भंडारी) चुननेकी-(१) जो न स्वेच्छाचारी हो० । और भिक्षुओ ! इस प्रकार चुनाव करना चाहिये० २।" 16 २–उस समय पड्वर्गीय भिक्षु भंडारीको उठा देते थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! भंडारीको नहीं उठाना चाहिये । जो उठाये उसे दुक्क ट का दोष हो।" 17 9 । १ चीवर-प्रतिग्राहककी तरहही चीवर-निदहकके गुण और चुनावके बारे में समझना चाहिये । चीवर-प्रतिग्राहककी तरह यहाँ भी समझना चाहिये। २