पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३४६

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<SC19 ) चीवरोंके वस्त्र [ २९३ मर गया। तब उस रोगी-परिचारक भिक्षुको ऐसा हुआ—'रोगी - परि चा र क श्रामणेरको कैसे हिल्सा देना चाहिये ?' भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, रोगी-परिचारक श्रामणेरको बरावरका भाग देने की।" 71 २-उस समय बहुत भांड-बहुत सामानवाला एक भिक्षु मर गया। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! भिक्षुकं मरनेपर उसके पात्र-त्रीवरका स्वामी संघ है। यदि रोगी-परिचारकने बहुत काम किया हो तो अनुमति देता हूँ संघको त्रिचीवर और पात्र रोगी-परिचारकको देनेकी। जो वहां छोटे छोटे भांड, छोटे छोटे मामान हों उन्हें संघके सामने बाँटने की ; जो वहाँ वळे वळे भांड, बळे वळे मामान हों उन्हें बिना दिये, बिना बाँटे आगत-अनागन (=वर्तमान और भविष्यके) चातुर्दिश (=चारों दिगाओंके, नारे संसारक) संघको (सम्पत्ति) होने की।" 72 F८-चीवरोंके वस्त्र रंग आदि (१) नंगे रहनेका निषेध उस समय एक भिक्षु नंगा हो जहाँ भगवान् थे वहाँ गया । जाकर भगवान्से यह बोला- "भन्ने ! भगवान्ने अनेक प्रकाग्ने अपेच्छना (=त्यागी जीवन) सन्तोप, तपस्या, (अव-) घूनपन. प्रासादिकता, अ-संग्रह, और उद्योगकी प्रगंन्या करते हैं । भन्ते ! यह नग्नता अनेक प्रकारसे अल्पेच्छता और उद्योगको लानेवाली है। अच्छा हो भन्ने ! भगवान् भिक्षुओंको नग्न रहनेकी अनुमति दें।" भगवान्ने पटवाग- "अयुवत है. मोघपुग्प ! अनुचित है, अप्रति रूप, श्रमणके आचरणके विरुद्ध, अविहित है, अकर- गीय है। कंगे मोधपुरप तुने तीथिकावे. आचार हम नग्नताको ग्रहण किया ! मोधपुरुष ! न यह अप्रसन्नीको प्रसन्न करने के लिये पटकाकर धार्मिक कथा वह भगवान्ने भिक्षुओंको नंबोधित किया- "भिक्षओ ! नग्नताको जो कि नीथिकोंका आचार है नहीं ग्रहण करनी चाहिये । जो ग्रहण करे उनको धुलल कन य का दीप हो।" 73 !