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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३५१

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९-चांपेय-स्कंधक १--कर्म और अकर्म । २--पांच प्रकार के संघ (के कोरम्) और उनके अधिकार । ३--नियम-विरत और नियमानुकूल दंड। ४---नियम-बिरुद्ध बंड । ५--नियम-बिगद्ध दंड-हटाच । ६-नियम-बिरुद्ध दंडका संशोधन । ७-नियम-विराट दंउ-हटावका संशोधन । ९१-कर्म और अकर्म ? --चम्पा (१) निर्दोपको उत्क्षिप्त करना अपराध है १- उस समय बुद्ध भगवान् न म्पा में ग ग रा पुष्करिणीके तीर विहार करते थे। उस समय का शी देशमें वा स भ गा म नामक (गांव) था। वहांपर का श्य प गोत्र नामक आश्रमवासी भिक्षु रहता था। वह इसके विपयमें बराबर यत्नशील रहता था जिसमें कि न आये अच्छे भिक्षु आवें, और आये अच्छे भिक्षु सुख-पूर्वक विहार करें; और यह आवास वृद्धि-वि रूढ़ि और वि पुल ता को प्राप्त हो। उस समय बहुतसे भिक्षु का शी (देश) में चारिका करते, जहाँ वा स भ गा म था वहाँ पहुंचे। का श्यप गोत्र भिक्षुने दूरसेही उन भिक्षुओंको आते देखा। देखकर आसन बिछाया, पादोदक, पाद- पीट, पादकठलिक रख दिया; और अगवानीकर (उनके) पात्र-चीवरको लिया। पानी पीनेको पूछा, नहानेके लिये प्रवन्ध किया। यवागू, खाद्य (और) भोजन (की प्राप्ति) का यत्न किया। तब उन नवा- गन्तुक भिक्षुओंको यह हुआ—'यह आश्चमवासी भिक्षु बहुत अच्छा है (हमारे) नहानेके लिये इसने प्रवन्ध किया, यवागू, खाद्य (और) भोजन (की प्राप्ति) का यत्न किया। आओ आवुसो ! हम इसी वा स भ ग्राम में वास करें।' तब उन आगन्तुक भिक्षुओंने वहीं वा स भ गा म में वास किया। तव काश्यपगोत्र भिक्षुको यह हुआ—'इन नवागन्तुक भिक्षुओंको यात्राकी जो थकावट थी वह भी दूर हो गई, जो स्थानकी अजानकारी थी वह भी जान गये, यावत्जीवन दूसरोंके कुटुम्बन (-खाने-पीनेकी चीजोंके लिये) यत्न करना दुष्कर है। मांगना लोगोंको अप्रिय होता है। क्यों न में यवागू, खाद्य और भोजनके लिये उत्सुकता करना छोळ दूं।' तव उसने यवागू, खाद्य और भातके लिये उत्सुकता करना छोळ दिया। तव उन नवागन्तुक भिक्षुओंको यह हुआ—आवुसो! पहले यह आश्रमवासी भिक्षु नहानेके लिये प्रवन्ध करता, यवागू, खाद्य और भोजनके लिये उत्सुकता करता था। सो आयुसो ! अब यह आश्रमवासी भिक्षु दुष्ट हो गया। आओ आवुसो! हम इस आश्रमवासी भिक्षुका उ त्क्षे प ण (-दंड) करें।' तब उन नवागन्तुक भिक्षुओंने एकत्रित हो का श्यप गोत्र भिक्षुसे यह कहा- "आवुस ! पहले तू नहानेके लिये प्रबन्ध करता, यवागू, खाद्य और भोजनके लिये उत्सुकता २९८ ] [ ९०११