पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३६५

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३०८ ] ३-महावग्ग [ १२८ कहता है--'हाँ आवुस ! प्रतिकार करूँगा।' तब उसका संघ प्रतिकार न करनेके लिये उत्क्षेपण करता है। (यह) अधर्म क र्म है । 28 "(३) भिक्षुओ ! यहाँ एक भिक्षुको छोळने लायक बुरी धारणा होती है । उसे संब० प्रेरित करता है--'आवुस ! तुझे बुरी धारणा है । उस बुरी धारणाको छोळ ।' वह यह कहता है-'हाँ आवुमो! छोलूंगा।' उसका संघ बुरी धारणाके न छोळनेके लिये उत्क्षेपण करता है। (यह) अ धर्म कर्म है। 29 "(४) भिक्षुओ ! यहाँ एक भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है, प्रतिकार करने लायक आपत्ति होती है ० । 30 "(५) ० एक भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है, छोळने लायक बुरी धारणा होती है 0 171 "(६) ० एक भिक्षुको प्रतिकार करने लायक आपत्ति होती है और छोळने लायक बुरी धारणा होती है ० 1 32 "(७) ० एक भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है, प्रतिकार करने लायक आपनि होती है और छोळने लायक वुरी धारणा होती है। उसे संघ ० प्रेरित करता है-'आवुस ! तुझमे आपनि हुई है । देखता है उस आपत्ति को ? उस आपत्तिका प्रतिकार कर ! तुझे बुरी धारणा है । उस बुरी धारणाको छोळ।' वह ऐसा कहता है-'हाँ आवुसो ! देखता हूँ । हाँ, प्रतिकार करूँगा, हाँ छोलूंगा।' उसे मंत्र न देखनेके लिये, प्रतिकार न करनेके लिये, न छोळनेके लिये उसका उत्क्षेपण करता है। (यह) अधर्म कर्म है।" 33 ?' (८) धर्मसे उत्तेपणीय कर्म क. “(१) "भिक्षुओ! एक भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है । उसको संघ या बहुतणे (भिक्षु) या एक व्यक्ति प्रेरित करता है-'आवुस ! तुझसे आपत्ति हुई है । देखता है तू उस आपनि- को?' वह ऐसा कहता है-'आवुसो ! मुझसे आपत्ति नहीं हुई है जिसे कि मैं देखू ।' संघ आपतिको न देखनेके लिये उसका उत्क्षेपण करता है। (यह) धर्म - कर्म है । 34 “(२) ० भिक्षुको प्रतिकार करने लायक आपत्ति होती है। । वह ऐसा बोलता है-'आबुमो ! मुझे आपत्ति नहीं है जिसका कि मैं प्रतिकार करूँ।' संघ आपत्तिका प्रतिकार न करनेके लिये उसका उत्शेषण करता है। (यह) धर्म - कर्म (=न्याय) है । 35 "(३) ० भिक्षुको छोळने लायक बुरी धारणा होती है ० । । वह ऐसा बोलता है-'आबुगो! मुझे बुरी धारणा नहीं है जिसको कि मैं छो→ ।' संघ बुरी धारणाके न छोळनेके लिये उसका उत्क्षेपण करता है। (यह) धर्म - क म है । 36 "(४) ० भिक्षुको देखने लायक आपत्ति और प्रतिकार करने लायक आपत्ति होती है। । 37 “(५) ० भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है और छोळने लायक बुरी धारणा होती है । 138 "(६) ० भिक्षुको प्रतिकार करने लायक आपत्ति होती है, छोळने लायक बुरी धारणा होती - है। ०। 39 ! "७–० भिक्षुको देखने लायक आपत्ति होती है, प्रतिकार करने लायक आपति होती है. और छोळने लायक बुरी धारणा होती है। उसको संघ० प्रेरित करता है-'आवुस ! तुझमे आपनि हु है। देखता है तू उस आपत्तिको? उस आपत्तिका प्रतिकार कर ! तुझे बुरी धारणा है; उस बुरी धारणा छोळ।' वह ऐसा कहता है—'आवुसो ! मुझे आपत्ति नहीं है जिसको कि मैं देखू । मुझे आपत्ति नहीं है ! १ ऊपरकी तरह यहाँ भी मिलाकर पढ़ना चाहिये।