! 9 > २ ९९४१ ] अधर्म कर्म [ ३११ (५) अधर्म कर्मका रूप तव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया- १-"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ स्मृति-विनय लायकको अमूढ़ विनय दे; (तो) भिक्षुओ! यह अधर्म-कर्म अविनय-कर्म होता है; और इस प्रकार संघ अतिसार-युवत होता है । ० स्मृति-विनय लायकका तत्पापीयसिक कर्म करे; स्मृति-विनय लायकका तर्जनीय कर्म करे; ० नियस्स कर्म करे; ० प्रव्राजनीय कर्म करे; ० प्रतिसारणीय कर्म करे; ० उत्क्षेपणीय कर्म करे० ; परिवास दे; ० मूलसे प्रतिकर्पण करे; ० मानत्त्व दे; ० आह्वान करे; स्मृति-विनय लायकको उपसम्पदा दे; (तो) भिक्षुओ! यह अधर्म कर्म, अविनय कर्म होता है; और इस प्रकार संघ अतिसार-युक्त होता है। २-"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ अमृढ़-विनय लायकका तत्पापीयसिक कर्म करे; ० अमूढ़-विनय लायकको उपसम्पदा दे; (तो) भिक्षुओ! यह अधर्म-कर्म, अविनय-कर्म होता है; और इस प्रकार संघ अतिसार-युक्त होता है । 41 ३-"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ , तत्पापीयसिक कर्म लायकको० 142 -"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ तर्जनीय कर्म लायकको० 143 ५-"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ नियस्स कर्म लायकको०२ 144 -"भिक्षुओ! यदि समग्र संघ प्रवाजनीय कर्म लायकको०२ 145 ० प्रतिसारणीय कर्म लायकको०२ 146 उत्क्षेपणीय कर्म लायकको०२ 147 ० परिवास लायकको०२ 148 • मूलसे प्रतिकर्षण लायकको 149 ० मानत्त्व लायकको०२। 50 १२-" ० आह्वान लायकको०२१ SI १३-"भिक्षुओ ! यदि समग्र संघ उपसम्पदा लायक को स्मृति विनय दे; (तो) भिक्षुओ! यह अधर्म कर्म, अविनय-कर्म होता है; और इस प्रकार संघ अतिसार-युक्त होता है। भिक्षुओ! यदि समग्र संघ उपसंपदा लायकको अमूढ़-विनय दे ० । ० तत्पापीयसिक कर्म करे० । ० तर्जनीय कर्म० । ० नियस्स कर्म ०।० प्रजाजनीय कर्म ०० प्रतिसारणीय कर्म ०1० उत्क्षेपणीय कर्म ०1० परिवास ०१० मूलसे प्रति- कर्षण ०1० मानत्त्व ०। भिक्षुओ! यदि समग्र संघ उपसंपदा लायकको आह्वान दे; (तो) भिक्षुओ ! यह अधर्म-कर्म अविन-यकर्म होता है; और इस प्रकार संघ अतिसार-युक्त है।" 52 उपालि भाणवार द्वितीय ॥२॥ ४-अधर्म कर्म (१) तर्जनीय कर्म "भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षु झगळालू , कलह-कारक, विवाद-कारक वकवादी, संघमें (सदा) मुकदमा करनेवाला होता है । १-यदि वहाँ भिक्षुओंको ऐसा हो-'आवुसो ! यह भिक्षु झगळालू ० है, आओ हम इसका o ९.
-/ 4 अमूढ-विनयके साथ वाकी सब वाक्योंको रखकर पढ़ना चाहिये । ऊपरकी भाँति आवृत्ति ।