पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१४ ] ३-महावग्ग . ५-"धर्माभाससे समग्र हो ० १ ०°189 २५-- वह धर्मा भा स से वर्ग हो उसका प्र ब्रा ज नी य क र्म करते हैं। 109 (४) प्रतिसारणीय कर्म १-"भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षु गृहस्थोंका आक्रोग (गाली-गलौज), परिभास (= बकवाद) करता है। वहाँ भिक्षुओंको यदि ऐसा होता है-'आवुसो! यह भिक्षु गृहस्थोंको आक्रोग परि भा स करता है, आओ, हम इसका प्रतिसारणीय कर्म करें। वह अधर्ममे वर्ग हो उसका प्रतिमार- णीय कर्म करते हैं। वह उस आवाससे दूसरे आवासमें चला जाता है। 110 २ --"वहाँ भिक्षुओंको ऐसा होता है-'आवुसो! संघने अधर्मसे वर्ग हो इस भिक्षुका प्रति- सारणीय कर्म किया है। आओ, हम इसका प्रतिसारणीय कर्म करें।' वह अधर्मसे समग्र हो उसका प्रति- सारणीय कर्म करते हैं। वह उस आवाससे दूसरे आवासमें चला जाता है। III ३.-"० धर्म से वर्ग हो । 112 ४-० धर्मा भा स से वर्ग हो । II3 ५-"० धर्मा भा स से स म न हो० । ० २ | II4 २५-"० वह धर्मा भा स से वर्ग हो उसका प्रति सा र णी य कर्म करते हैं।" 134 (५) उत्क्षेपणीय कर्म क. “(१) भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षु आपत्ति (अपराध) करके उस आपित्तको देवना ( Realisation ) नहीं चाहता। वहाँ यदि भिक्षुओंको ऐसा होता है-'आवुसो ! यह भिक्षु आपत्ति करके उसको देखना नहीं चाहता। आपत्तिके न देखनेसे आओ, हम इसका उत्क्षेपणीय कर्म करें। वह अधर्मसे वर्ग हो उसका उत्क्षेपणीय कर्म करते हैं। वह आवाससे दूसरे आवासमें चन्दा जाता है। 135 "(२) वहाँ भिक्षुओंको ऐसा होता है-'आवुसो ! संघने आपत्तिके न देखनेसे इस भिशुका अधर्म से वर्ग हो उत्क्षेपणीय कर्म किया है। आओ, हम आपत्तिके न देखनेसे इसका उत्क्षेपणीग कर्म करें।' वह अधर्मसे समग्र हो आपत्तिके न देखनेसे उसका उत्क्षेपणीय कर्म करते हैं। वह उस आवाग से चला जाता है। 136 ० धर्म से वर्ग हो । 137 "(४) ० धर्मा भा स से वर्ग हो । 138 "(५) ० धर्मा भा स से स म ग्र हो । 1139 "(२५) ० धर्मा भा स से वर्ग हो आपत्तिके न देखनेसे उसका उत्क्षेपणीय कर्म करते हैं।" 199 ख. “(१) भिक्षुओ! यहाँ एक भिक्षु आपत्ति करके आपत्तिको प्रतिकार नहीं करना चाहता। वहाँ भिक्षुओंको ऐसा होता है-'आवुसो! यह भिक्षु आपत्ति (=दोप) करके आपत्तिका प्रतिकार नहीं करना चाहता, आओ, हम आपत्तिके प्रतिकार न करनेसे इसका उत्क्षेपणीय कर्म करें।' वह वर्ग हो आपत्तिके प्रतिकार न करनेके लिये उसका उत्क्षेपणीय कर्म करते हैं। वह उस आवागमे गरे आवासमें चला जाता है। 160 "(२) वहाँ भिक्षुओंको ऐसा होता है-'आवुसो ! संघने अधर्मसे वर्ग हो आपत्तिका प्रतिकार 'अधर्मग तर्जनीय कर्मकी तरह यहाँ भी नम्बर पच्चीस तक दुहराना चाहिये। तर्जनीय कर्मकी तरह यहाँ भी नम्बर पच्चीस तक दुहराना चाहिये ।