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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३८८

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१०९११८ ] भिक्षुसंघका परित्याग [ ३३१ तव भगवान्-'यह मोघ पुरुष परिया न्न रूप (अत्यन्त लिप्त) हैं इनको समझाना सुकर नहीं'-(सोच) आश्रमसे उठ चल दिये । (इति) दीर्घायु भाणवार ॥ १ ॥ (८) भिक्षु-संघका परित्याग तब भगवान् पूर्वाह्न समय (वस्त्र) पहनकर पात्र-चीवरले कौशाम्बीमें भिक्षाचारकर, भोजनकर पिंड-पातसे उठ, आसन समेट, पात्र चीवर ले, खळेही खळे इस गाथाको बोले- "वळे शब्द करने वाले एक समान (यह) जन कोई भी अपनेको बाल (=अज्ञ) नहीं मानते; संघके भंग होनेपर (और) मेरे लिये मनमें नहीं करते ।। मूढ, पंडितसे दिखलाते, जीभपर आई बातको बोलने वाले ; मन-चाहा मुख फैलाना चाहते हैं। जिस (कलह) से (अयोग्य मार्गपर) ले जाये गये हैं, उसे नहीं जानते ।। 'मुझे निन्दा', 'मुझे मारा', 'मुझ जीता', 'मुझे त्यागा' । (इस तरह) जो उसको नहीं वाँधते, उनका वैर शांत होजाता है ।। वैरसे वैर यहाँ कभी शांत नहीं होता । अ-वैरसे ( ही ) शांत होता है, यही सनातन-धर्म है । दूसरे (= अपंडित) नहीं जानते, कि हम यहाँ मृत्युको प्राप्त होंगे। जो वहाँ (मृत्युके पास) जाना जानते हैं, वे (पंडित) बुद्धिगत (कलहोंको) शमन करते हैं । हड्डी तोळने वालों, प्राण हरने वालों, गाय-घोळा-धन-हरनेवालों। राष्ट्रको विनाश करनेवालों (तक) का भी मेल होता है । यदि नम्र-साधु-विहारी (पुरुष) सहचर-सहायक (=साथी) मिले । तो सब झगळोंको छोळ प्रसन्न हो बुद्धिमान् उसके साथ विचरे ।। यदि नम्र साधु-विहारी धीर सहचर सहायक न मिले । तो राजाकी भाँति विजित राष्ट्रको छोळ, उत्तम मातंग-राजकी भाँति अकेला विचरे । अकेला विचरना अच्छा है, वालसे मित्रता नहीं (अच्छी) । वे पर्वाह हो उत्तम मातंग-(नाग) राजकी भाँति अकेला विचरे, और पाप न करे ।।" २-बालकलोणकार ग्राम तब भगवान् खळे खळे इन गाथाओंको कहकर, जहाँ वा ल क-लोण का र ग्राम था, वहाँ गये । उस समय आयुष्यमान् भृगु बालक-लोणकार ग्राममें वास करते थे। आयुष्मान् भृगुने दूरसे ही भगवान्को आते देखा । देखकर आसन विछाया, पैर धोनेको पानी भी (रक्खा)। भगवान् विछाये आसनपर बैठे । वैठकर चरण धोये । आयुप्मान् भृगु भी भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये । एक और बैठे हुये आयुप्मान् भृगुसे भगवान्ने यों कहा-"भिक्षु ! क्या खमनीय (-ठीक) तो है, क्या यापनीय ( =अच्छी गुजरती ) तो है ? पिंड ( भिक्षा ) के लिये तो तुम तकलीफ नहीं पाते ?" "खमनीय है भगवान् ! यापनीय है भगवान् ! मैं पिंडके लिये तकलीफ नहीं पाता।" ३-प्राचीनवंशदाय तब भगवान् आयुप्मान् भृगुको धार्मिक कथासे ० समुत्तेजितकर०, आसनसे उठकर, जहाँ प्रा ची न-दंदा-दाव है, वहाँ गये । उन समय आयुप्मान् अनु र द्ध, आयुष्मान् न न्दि य और आयुष्मान ....