[ Pogere ३३० ] ३-महावग्ग " 'अच्छा देव !'- (कह)...दीर्घायु कुमारने काशिराज ब्रह्मदत्तको उत्तर दे स्य को काशिराज ब्रह्मदत्तसे यह कहा- 'देव ! तुम्हारा रथ जुत गया । अब जिसका समय समझो (वैसा) करो।' "तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्त रथपर चढ़ा और दीर्घायु कुमारने स्य हाँका । (उसने) रथको ऐसा हाँका कि थोळीही देरमें सेनासे मिलगया। तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्म दत्त ने वा ग- णसी में प्रवेशकर अमात्यों और परिपदोंको एकत्रितकर यह कहा- " 'भणे! यदि कोसलराज दी घी ति के पुत्र दीर्घा यु कु मा र को देखो तो उसका क्या करोगे?' किन्हीं किन्हींने कहा-'हम देव ! हाथ काट लेंगे'; 'हम देव ! पैर काट लेंगे', 'हम देव ! हाय पैर काट लेंगे'; 'हम देव ! कान काट लेंगे'; ' हम देव ! नाक काट लेंगे', 'हम देव नाक-कान काट लेंगे', 'हम देव ! सिर काट लेंगे।' " 'भणे यह कोसलराज दी घी ति का पुत्र दीर्घा यु कुमार है । इसका तुम कुछ नहीं करने पाओगे इसने मुझे जीवन-दान और मैंने इसे जीवन-दान दिया ।' "तब भिक्षुओ ! काशिराज ब्रह्मदत्तने दी र्घा यु कु मा र से यह कहा- " 'तात दीर्घायु ! पिताने मरनेके समय जो तुमसे कहा,-ता त दीर्घायु । यह तुम छोटा वळा देखो. अवैरसे ही तात दीर्घायु ! वैर शान्त होता है क्या सोचकर तुम्हारे पिताने ऐसा कहा?" "मत बळा='मत चिरकाल तक वैर करो' यह सोच देव ! मेरे पिताने मरनेके समय इन वळा' कहा । और जो देव ! मेरे पिताने मरनेके समय कहा~'मत छोटा'-(सो) मत जल्दी मित्रा से विगाळ करो यह सोच मेरे पिताने मरने के समय कहा-मत छोटा । और जो देव ! मेरे पिनाने मरनेके समय कहा-~'वैरसे वैर नहीं शान्त होता; अवरसे ही वैर शान्त होता है'-(सो) देवने मेरे माता-पिताको मारा यह (सोच) यदि मैं देवको प्राणसे मारता तो जो देवके हित चाहनेवान्न हैं वे मुझे प्राणसे मार देते । और (फिर) जो मेरे हित चाहनेवाले हैं वे उनको प्राणसे मारते उसे प्राकर वह वैर वैरसे शान्त न होता । किन्तु इस वक्त देवने मुझे जीवन-दान दिया और मैंने देवा जीवन-दान दिया । इस प्रकार अवरसे वह वैर शान्त होता था। देव ! यह समझ मेरे पिताने मग्ने के समय कहा-तात दीर्घायु ! ०अवैरसे ही वैर शान्त होता है।' "तव भिक्षुओ काशिराज ब्रह्मदत्तने-'आश्चर्य है रे ! अद्भुत है रे ! कितना पंडित पर दीर्घा यु कुमार है जो कि पिताके संक्षेपसे कहेका (इतना) विस्तारसे अर्थ जानता है !' - (र उसके) पिताकी सेना, वाहन, देश, कोश, कोष्ठागारको लौटा दिया (और अपनी) कन्या प्रदान किया। "भिक्षुओ ! दंड ग्रहण करनेवाले, शस्त्र ग्रहण करनेवाले उन क्षत्रिय राजाओंका भी न आपसमें मेल हो (तो) क्या भिक्षुओ यह शोभा देता है कि ऐसे स्वाख्यात (=अच्छी तरह का ख्यात) धर्ममें प्रवजित हुए तुम्हारा मेल (न) हो।" "दूसरी बार भी "तीसरी बार भी भगवान्ने उन भिक्षुओंसे यह कहा- “ 'वस भिक्षुओ ! मत झगळा, कलह, विग्रह, विवाद करो।" तीसरी बार भी उस अधर्मवादी भिक्षुने भगवान्मे यह कहा- "भन्ते ! भगवान् ! धर्मस्वामी ! रहने दें, परवाह मत करें ! भन्ने भगवान् दृष्ट-धर्म ( =इसी जन्म ) के सुखके माथ बिहार करें। हम इस झगळे, कलह, विट, fr जान लेंगे।" i !
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