पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४०४

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१७११८ ] दंड माफ़ करने लायक व्यक्ति (७) दंड न माफ़ करने लायक व्यक्ति तव संघने पंडुक और लो हि त क भिक्षुओंका तर्जनीय कर्म किया। वे संघके तर्जनीय कर्मसे पीड़ित हो ठीकसे वर्ताव करते थे, रोवाँ गिराते थे, निस्तारके लायक (काम) करते थे। भिक्षुओंके पास जाकर ऐसा कहते थे- "आवुसो ! संघद्वारा तर्जनीय कर्मसे दंडित हो हम ठीकसे वर्तते हैं, रोवाँ गिराते हैं, निस्तारके लायक ( काम ) करते हैं। कैसे हमें करना चाहिये ?" भगवान्से यह बात कही।- "तो भिक्षुओ ! संघ, पंडु क और लो हि त क भिक्षुओंके तर्जनीय कर्मको माफ़ (=प्रतिप्रश्रब्ध शान्त ) करे । 35 ( १-५ ) "भिक्षुओ ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये- (१) उ प स म्प दा देता है; (२) नि श्र य२ देता है; (३) श्रामणेरसे उ प स्था न (=सेवा) कराता है; (४) भिक्षुणियोंको उपदेश देनेकी सम्मति पाना चाहता है; (५) सम्मति मिल जानेपर भी भिक्षु- णियोंको उपदेश देता है ।..34 (६-१०) “और भी भिक्षुओ! पाँच बातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्मको नहीं माफ़ करना चाहिये-(६) जिस आपत्तिके लिये संघने तर्जनीय कर्म किया है उस आपत्तिको करता है; (७) या वैसी दूसरी आपत्ति करता है; (८) या उससे अधिक बुरी आपत्ति करता है; (९) कर्म (= फैसला, की निंदा करता है; (१०) कर्मिक (=फैसला करने वालों) की निंदा करता है । 35 (११-१८) "भिक्षुओ ! आठ वातोंसे युक्त भिक्षुका तर्जनीय कर्म न माफ़ करना चाहिये- (११) प्रकृ तात्म भिक्षुके उपोसथको स्थगित करता है; (१२) (०की) प्र वा र णा स्थगित करता है; (१३) वात वोलने लायक काम करता है; (१४) अनुवाद (=शिकायत) को प्रस्थापित करता है; (१५) अवकाश कराता है; (१६) प्रेरणा कराता है; (१७) स्मरण कराता है; (१८) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग करता है।" 36 अट्ठारह न प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त ! (८) दंड माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) “भिक्षुओ ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्मको माफ़ करना चाहिये-(१) उपसम्पदा नहीं देता ; (२) निश्रय नहीं देता; (३) श्रामणेर से सेवा नहीं कराता; (४) भिक्षुणियोंके उपदेश देनेकी सम्मति पानेकी इच्छा नहीं रखता; (५) सम्मति मिल जानेपर भी भिक्षुणियोंको उपदेश नहीं देता । 37 (६-१०) “और भी भिक्षुओ! पाँच वातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्मको माफ़ करना चाहिये- (६) जिस आपत्तिके लिये संघने तर्जनीय कर्म किया है उस आपत्तिको नहीं करता; (७) या वैसी दूसरी आपत्तिको नहीं करता; (८) या उससे दुरी दूसरी आपत्तिको नहीं करता; (९) कर्म (=न्याय) की निंदा नहीं करता; (१०) कर्मिक (= फैसला करनेवालों)की निंदा नहीं करता। 38 (११-१८) "और भी भिक्षुओ! आठ वातोंसे युक्त भिक्षुके तर्जनीय कर्म को माफ़ करना १ महावग्ग १९४१६ (पृष्ठ १३२) । महावग्ग १९४७ (पृष्ठ १३४) । ३ ४४