पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४०६

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१७२।४] नियमानुसार नियस्स दंड । ३४७ (नि य स्स क र्म की वि घि)-बुद्ध भगवान्ने फटकारा-01 फटकारकर धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "तो भिक्षुओ ! संघ से य्य स क भिक्षुका नि य स्स कर्म करे । उनका नि स्स य (=निश्रय') करके रहना चाहिये ।” 41 (२) दंड देनेको विधि "और भिक्षुओ! इस प्रकार ( निस्स-कर्म ) करना चाहिये--पहिले से य्य स क भिक्षुको प्रेरित करना चाहिये, प्रेरित करके स्मरण दिलाना चाहिये, स्मरण दिलाकर आपत्तिका आरोप करना चाहिये । आपत्तिका आरोपकर चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- "क. ज्ञ प्ति-'भन्ते ! संघ मेरी सुने, यह से य्य स क भिक्षु वाल० आह्वान करता है, यदि संघ उचि तसमझे तो संघ सेय्यसक भिक्षुका, नियस्स कर्म करे उनका नि स्स य ले रहना चाहिये--यह सूचना है।' ". अनुश्रा व ण- -'(१)पूज्य संघ मेरी सुने,०। जिस आयुष्मान्को सेय्यसक भिक्षुका नियस्स कर्म करना और निस्सय लेकर रहना पसंद हो वह चुप रहे, जिसको पसंद न हो वह वोले । “(२) 'दूसरी वार भी० । "(३) 'तीसरी वार भी इसी बातको कहता हूँ-पूज्यसंघ मेरी सुने-जिसको पसंद न हो वह वोले। "ग. धा र णा-'संघने सेय्यसक भिक्षुका नियस्स कर्म उनका निस्सय लेकर रहना किया, संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ' ।" (३) नियम विरुद्ध नियस्स दंड (१) “भिक्षुओ ! तीन वातों से युक्त नि य स्स क र्म, अधर्म कर्म, अ वि न य, कर्म ठीक से न संपा- दित होता है-(१) सामने नहीं किया गया होता, (२) विना पूछे किया गया होता है; (३) विना प्रतिज्ञा (=स्वीकृति) कराये किया गया होता है।...० २। 42 १२-"और भी भिक्षुओ ! तीन वातों से युक्त नियस्स कर्म, अधर्म कर्म, अविनय कर्म० होता है- (१) आपत्तिका आरोप किये बिना किया गया होता है; (२) अधर्मसे किया गया होता है; (३) वर्गसे किया गया होता है । भिक्षुओ! इन तीन वातोंसे युक्त तर्जनीय कर्म, अधर्म कर्म, अविनय कर्म और ठीक से न संपादित होता है ।" 53 बारह अधर्म कर्म समाप्त (४) नियमानुसार नियस्स दंड --"भिक्षुओ ! तीन वातोंसे युक्त नियस्स कर्म धर्मकर्मकृ० (कहा जाता) है। -(१) सामने किया गया होता है; (२) पूछकर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञा (= स्वीकृति) कराके किया गया होता है । भिक्षुओ ! इन तीन अंगोंसे युक्त नियस्सकर्म धर्मकर्म० (कहा जाता) है। ० ३ 54 (१२)"o--(१) आपत्तिका आरोप करके०; (२) धर्मसे०; (३) समग्रसे०१०। 65 वारह अधर्म कर्म समाप्त १ महावग्ग १९४७ (पृष्ठ १३४) । 'देखो पृष्ठ ३४३ ॥ २ देखो १९११३ (पृष्ठ ३४२) ।