पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४०८

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10 १९३।१] प्रजाजनीय दंडके आरम्भकी कथा [ ३४९ चाहता हूँ।' दूसरी वार भी०। तीसरी बार भी-'भन्ते ! ० नियस्स कर्मकी माफ़ी चाहता हूँ।' "(तव) चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-०१ । "-'संघने से य्य स क भिक्षुके नियस्स कर्मको माफ़ कर दिया; संघको पसंद है इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" 80 नियस्स कर्म समाप्त ॥२॥ ६३-प्रव्राजनीय कर्म (१) प्रव्राजनीय दंडके प्रारम्भकी कथा उस समय अश्व जि त् और पुनर्वसु नामक (दो) भिक्षु की टा गिरि में आवासिक (=सदा आश्रममें रहनेवाले (भिक्षु) थे। वे इस प्रकारका अनाचार करते थे--मालाके पौदेको रोपते, रोपवाते थे, सींचते-सिंचाते थे, चुनंते-चुनवाते थे, गूंथते-गुंथवाते थे । इकहरी बँटी माला बनाते भी थे वनवाते भी थे। दोनों ओर से बंटी माला बनाते भी थे, बनवाते भी थे, मंजरिका (= मंजरी) बनाते भी थे वनवाते भी थे; विधूतिका बनाते भी थे बनवाते भी थे, वटंसक (=अवतंसक) वनाते थे बनवाते भी थे; आवेळ ( आपीड) बनाते भी थे, वनवाते भी थे, उरच्छद बनाते भी थे। वनवाते भी थे, वे कुलकी स्त्रियों, दुहिताओं, कुमारियो, बहुओं, दासियोंके लिये एक ओरकी वंटिक मालाको ले भी जाते थे, लिवा भी जाते थे; दोनों ओरकी वंटिकमालाको ले भी जाते थे लिवा भी जाते थे; ० उ र च्छ द ले भी जाते थे लिवा भी जाते थे। वे कुलकी स्त्रियों, दुहिताओं, कुमारियों, बहुओं और दासियोंके साथ एक वर्तनमें खाते थे, एक प्यालेमें पीते थे, एक आसनमें वैठते थे, एक चारपाईपर लेटते थे, एक विस्तरेपर लेटते थे, एक ओढ़नेमें लेटते थे, एक ओढ़ने विछौनेसे लेटते थे, विकाल (= दोपहरवाद) भी खाते थे, मद्य भी पीते थे, माला, गंध और उवटनको भी धारण करते थे, नाचते भी थे, गाते भी थे, बजाते भी थे, लास (=रास) भी करते थे, नाचनेवालीके साथ नाचते भी थे, नाचनेवालीके साथ गाते थे, नाचनेवालीके साथ वजाते थे, नाचनेवालीके साथ ला स करते थे। गानेवालीके साथ नाचते थे, ० गानेवालीके साथ लास करते थे, बजानेवालीके साथ नाचते थे० वजानेवालीके साथ लास करते थे। लास करनेवालीके साथ नाचते थे ० लास करनेवालीके साथ लास करते थे । अष्टपद (=जुए) को खेलते थे, दशपद= (जुए) को खेलते थे। आकाशमें भी क्रीडा करते थे, परिहा र पथ में भी खेलते थे। सप्तिका भी खेलते थे, खलिका भी खेलते थे, घटिका भी खेलते थे, शलाकाहस्त भी खेलते थे। अक्ष (=एक प्रकारका जुआ)से भी खेलते थे। पगंचीरने से भी खेलते थे । वंकक से भी खेलते थे। मोक्खचिक्र से भी खेलते थे। त्रिगुलक से भी खेलते थे। पत्ता ळ् ह क से भी खेलते थे। रथक (=खिलौनेकी गाळी)- ने भी खेलते थे, धनुहीसे भी खेलते थे। अक्षरिका से भी खेलते थे। मनेसिका से भी खेलते थे। यथा वज्जा से भी खेलते थे। हाथी-(की विद्या)को भी सीखते थे, घोळे (की विद्या) को भी सीखते थे, रथ (की विद्या) को भी सीखते थे, धनुप (की विद्या) को भी सीखते थे। परशु (की विद्या)को भी सीखते थे। हाथोके आगे आगे भी दौळते थे, घोळेके आगे आगे भी दौळते थे, रथके आगे आगे भी दौळते थे। दोळकर चक्कर भी काटते थे, उम्सोह' भी कहते थे। अपोठ' भी कहते थे, निबुज्झ" भी करते थे। मुक्केबाजी भी करते थे। रंग (=थियेटर हाल) के वीचमें संघाटी फैलाकर नाचनेवाली (स्त्री) से - १ देखो पप्ट ३४६ । तर्जनीय कर्मके स्थानमें 'नियस्स कर्म' कर लेना चाहिये । मालाओंके नाम हैं। जूओं के नाम । ४ दौळों और व्यायामों के नाम । 2