पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४२९

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३७० ४-चुल्लवग्ग [ २१२ "(९४) यदि भिक्षुओ ! पारिवासिकको चौथा बना (भिक्षु-संघ) परिवास दे, मूलमे-प्रतिकर्षण करे, मानत्व दे, या बीसवाँ (बना) आह्वान करे तो वह अकर्म (=अन्याय) है, करणीय नहीं है ।"१ पारिवासिकके चौरानबे व्रत समाप्त (४) परिवासमें गिनी और न गिनी जानेवाली रातें उस समय आयुष्मान् उ पा लि जहाँ भगवान् थे वहाँ गये। एक ओर जा अभिवादन कर...एक ओर बैठ आयुष्मान् उपालिने भगवान्से यह कहा-- "भन्ते पारिवासिक भिक्षुकी कौनसी रातें कट जाती हैं (= गिनती में नहीं आती) ?' "उपालि ! पारिवासिक भिक्षुकी तीन रातें कट जाती हैं-(१) साथ वास' करना, (२) विप्र-वास (=अकेला निवास); (३) न बतलाना --उपालि ! पारिवासिक भिक्षुकी ये तीन रातें कट जाती हैं।" (५) परिवासका निक्षेप (-मुल्तबी रखना) उस समय था व स्ती में वळा भारी भिक्षु-संघ एकत्रित हुआ था (अपने पारिवासिकके कर्तव्योंको पालन करके) पारिवासिक भिक्षु परिवासको शुद्ध नहीं कर सकते थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ परिवासके निक्षेप (- स्थगित) करनेकी ।"4 और भिक्षुओ ! इस प्रकार निक्षेप करना चाहिये --वह पारिवासिक भिक्षु एक भिक्षुके पास जाकर एक कंधेपर उत्तरा-मंगकर उकळू बैठ हाथ जोळ ऐसा कहे-- "परिवासका मैं निक्षेप करता हूँ, (तो) परिवासका निक्षेप हो जाता है । 'तके (कर्तव्यका) निक्षेप करता हूँ।'-(तो) परिवासका निक्षेप होता है ।' (६) परिवासका समादान उस समय भिक्षु श्रावस्तीने जहाँ तहाँ चले गये । पारिवागिक भिक्षु परिवागको गुद्र नहीं कर पाते थे। भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, परिवासके समादान ( = ग्रहण ) की। और भिक्षुओ! इस प्रकार समादान करना चाहिये-~बह पारिवार्मिक भिक्षु एक भिक्षुके पास जाकर हाथ जोन रोमा कहे-- 'परिवासका समादान करता हूँ;' (नो) परिवासका ममादान हो जाता है । वनका नगादान करता हूँ; (तो) परिवामका ममादान हो जाता "S पारिदासिक व्रत समाप्त ३२-मृत्नसे-प्रतिकर्षगा दगड पाय भिनुक कर्त्तव्य उम ममय मूल ने प्रति कर्पणाई भिक्ष अटित मिक्षा अभिवादन ग्नान करने वक्त पीट मलना (इन कामोंको) लेते थे ।०३ "भिक्षुओ ! प्रतिकर्षणाई निक्षको ठीकने वर्नना चाहिय; और टीवी वर्गव यह :-- "१-उपमम्पदा न देनी चाहिय; ३ (१) यदि निओ ! मन्टन प्रतिकपणा: २ 3 देग्यो चल,? "देखो चुल्ल २११ पृष्ट ३६७ । चाल ९१३ (१) पृष्ट ३६७-६८ "पारिवासिक" के स्थानपर "मूलने प्रतिवर्षमाई" --दम परिवर्तनके माथ। पृष्ट ३६७-७०; "पारिदामिपके स्थानपरक प्रतिस्पं गाट," इस परिवर्तन के साथ ।