पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४३३

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३७४ ] ४-चुल्लवग्ग [ ३७१।ग१ "और भिक्षुओ ! इस प्रकार (परिवास) देना चाहिये-वह उदायी भिक्षु मंबके पास जाल ऐसा बोले- भन्ते ! मैंने एक आपत्ति की है; सो मैं भन्ते ! संघसे० एक आपत्तिके लिये एकदिन वाला परिवास चाहता हूँ। (दूसरी बार भी) ०। (तीसरी बार भी) ०।' "तव चतुर समर्थ भिक्षु-सघको सूचित करे--011 "ग. धा र णा-'संघने उदायि भिक्षुको० आपत्तिके लिये एकदिन वाला परिवास दिया । संघको पसंद है इसलिये चुप है, ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" (२) परिवासके बाद छ रातवाला मानत्त्व तब उन्होंने परिवास पूरा करके भिक्षुओंसे कहा- "आवुसो ! मैंने० एक आपनिकी ।० संघसे० एक दिनका परिवास माँगा । संघने ० दिया। सो मैंने परिवास पूरा कर लिया । अब मुझे कैसा करना चाहिये ?" भगवान्से यह बात कही।-- "तो भिक्षुओ ! संघ उ दा यी भिक्षुको जान बूझकर एकदिनवाले प्रतिच्छन्न शुक्र-त्यागके लिये छ रातवाला मानत्व दे । " 'और भिक्षुओ ! इस प्रकार छ रातवाला मानत्व देना चाहिये--उस उदायी भिक्षुको संघके पास जा०।१ “ग. धा र णा-'संघने उ दा यी भिक्षुको० आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व दिया । संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा में इसे समझता हूँ' ।" (३) मानत्त्वके वाद आह्वान वह मानत्व पूरा करके भिक्षुओंसे बोले--० । "तो भिक्षुओ ! मंघ उ दा यी भिक्षुका आह्वान करे ।०२ "ग. धा र णा-'संघने उदायि भिक्षुको० आवाहन दिया । संघको पसंद है, इसलिये चुप है-- ऐसा मैं इसे समझता हूँ' ।" ग (१) दो पाँच दिनके छिपायेके लिये पाँच दिनका परिवास १-उस समय उदायी भिक्षुने जान बूझकर दो दिन वालेप्रतिच्छन्न (: छिपाया) शुक्र-त्यागकी आपत्ति की थी० ।'३ २-उस समय उदायी भिक्षुने जान बुझकर तीन दिनवाले प्रतिच्छन्न । ३ ३-उस समय उदायी भिक्षुने जान बूझकर चार दिनवाले प्रतिच्छन्न । ३ ४-उम ममय उदायी भिक्षुने जान बुझकर पांच दिनवाले प्रतिच्छन्न शुक्र-त्यागी आग की थी। उन्होंने भिक्षुओंने कहा-०।" "तो भिक्षुओ ! मंघ उदायी भिक्षुकोः पाँच दिनवाला परिवाम दे० ' ।" 6 २ ५ देखो चुल्ल ३११क पुष्ट ३७२-३ । देग्यो चल्ल ३०१३म्य पृष्ठ । ३ देखो एक दिनवाले प्रतिच्छन्न शुक्र-त्यागको आपनि चल ३.१।१? पृष्ट ३७३ । देखो चुल्ल ३१ ह पृष्ट ३७३ । दग्दो चल्ल ३य पृष्ट ३७३-४८३ । 4 ४