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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४३२

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३७१शख१ ] एक दिनवाला परिवास । ३७३ "(२) 'दूसरी बार भी। "(३) 'तीसरी बार भी। "ग. धा र णा--'संघने उ दा यी भिक्षुको • आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व दिया । संघको पसंद है इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" वह मानत्व पूरा करके भिक्षुओंसे बोले-- "आवुसो ! मैंने० शुक्र-त्यागकी एक आपत्ति की। तब मैंने संघसे० आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व मांगा। तब संघने मुझे आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व दिया । अब मैंने मानत्वको पूरा कर दिया। अब मुझे कैसे करना चाहिये ?" क ( २ ) मानत्त्वके बाद अाह्वान भगवान्से यह बात कही ।- "तो भिक्षुओ ! संघ उदायी भिक्षुका आह्वान करे । "और भिक्षुओ! आह्वान इस प्रकार करना चाहिये- --उस उ दा यी भिक्षुको सं पास जा ऐसा कहना चाहिये-भन्ने ! मैंने आपतिकी । तब मैंने संघसे ० आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व मांगा। तव संघने मुझे आपत्तिके लिये छ रातवाला मानत्व दिया । सो मैं भन्ते ! मानत्वको पूगकर संघमे आह्वान माँगता हूँ। (दूसरी बार भी) भन्ते ! मैंने आपत्ति की । आह्वान गगता हूँ। (तीसरी बार भी) भन्ते ! मैंने आपत्ति की । आह्वान मागता हूँ।' "तब चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- “क. ज्ञप्ति-'भन्ते ! संघ मेरी सुने । ० इस उदायी भिक्षुने० शुक्र-त्यागकी एक आपत्तिको है। वह संघसे० शुक्र-त्यागकी एक आपत्तिके लिये आह्वान माँगता है । यदि संघ उचित समझे तो संघ उदायी भिक्षुको आह्वान यह सूचना है ।" "ख. अनु था व ण-(१) भन्ते ! संघ मेरी सुने । इस उदायी भिक्षुने शुक्र-त्यागकी एक आपत्ति की है। वह संघसे आपत्तिके लिये आह्वान चाहता है । संघ उदायी भिक्षुको० आपत्तिके लिये आह्वान देता है । जिस आयुप्मान्को उदायी भिक्षुको० आपत्तिके लिये आह्वान देना पसंद है वह चुप रहे, जिसको नहीं पसंद है, वह वोले०। "(२) 'दूसरी बार भी०। "(३) तीसरी बार भी०। "ग. धा र णा-'संघने उदायी भिक्षुको आह्वान कर दिया । संघको पसंद है, इसलिये चुप है- ऐसा मैं हमे समझता हूँ।" ख (१) एक दिनवाला परिवास उस समय आयुप्मान् उदायीने जान बूझ कर एक दिन शुक्र-त्यागकी एक प्रतिच्छन्न ( =छिपा रवी) आपत्ति की थी। उन्होंने भिक्षुओंसे कहा- "आवुनो ! मैंने जान बूझ कर एक दिन शुक्र-त्यागकी एक प्रतिच्छन्न आपत्ति की है। मुझे केने करना चाहिये ?" भगवान्ने यह दान कही ।- "नो निक्षुओ! मंघ उदायी भिक्षुको एक आपनिके लिये एक दिनवाला है परिवाम दे । -- मानत्व पानेवालेके कर्तव्य विषयमें देखो चुल्ल २६३ पृष्ठ ३७१ ।