पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४४१

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11 0 ३८२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ३७२।१ "ग. धा र णा-संघने अमुक नामवाले भिक्षुको ० दूसरे मासका भी परिवास दिया। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ।' "तो भिक्षुओ! उस भिक्षुको पहिले (मास) को लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये।' 31 २-“यदि भिक्षओ ! एक भिक्षुने दो संघादिसेसोंकी दो मास प्रतिच्छन्न दो आपत्नियाँ की हों। उसको ऐसा हो--० चल संघसे दोनों आपत्तियोंके लिये दूसरे मासका भी परिवास माँगू ।०।-- "तो भिक्षुओ! संघ उस भिक्षुको दो मास प्रतिच्छन्न दोनों आपत्तियोंके लिये बाकी दूसरे मासका भी परिवास दे। और • भिक्षुको पहिले (परिवास दिये मास) को लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये।" 32 ३ '० एक मासको जानता हो, दूसरे मासको नहीं ०१ । परिवास करते वक्त उसे दूसरा मास भी मालूम हो। '० चा संघसे ० दूसरे मासका भी परिवास माँगूं।०।०।० पहिलेको लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये। 33 एक मासको याद रखता हो, दूसरे मासके बारेमें नहीं ०२। परिवास करते वक्त उमे दूसरा मास भी याद आये ।--० चळ मंघसे ० दूसरे मासका भी परिवास माँगूं ।०।०।० पहिलेको लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये । 34 ५-"० एक मासके बारेमें सन्देह हो, दूसरे मासके बारेमें नहीं ०।३ परिवास करते वक्त वह दूसरे मासके बारेमें भी सन्देह-रहित हो जाये।--० चलू, संघसे ० दूसरे मासका भी परिवार माँगू ।०1०1० पहिलेको लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये । 35 '० एक मासको जानबूझकर प्रतिच्छन्न रक्खा गया हो, दूसरेको अनजानसे । वह संघमे ० दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास माँगे। मंघ उसे दो मास प्रतिच्छन्न दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास दे। परिवास करते वक्त दूसरा वहुश्रुत ० " भिक्षु आवे । वह ऐसा पूछे--'आवुगो ! इस भिक्षुने क्या आपत्ति की, किसके लिये यह परिवास कर रहा है ?' वह ऐसा कहें--'आयुग ! इस भिक्षुने ० दो मास प्रतिच्छन्न दो आपत्तियाँ की। इसने एक माराको जानबूझकर प्रतिच्छन्न (: छिपा) रक्खा, दूसरेको अनजान मे । ०संघने दो मासका परिबास दिया है। आबुम ! उन आगनियोंको इग भिक्षुने किया है, उन्हींके लिये यह परिवास कर रहा है।' वह ऐमा कहे--'आवुमो ! जिम मागको जान कर इसने प्रतिच्छन्न किया, उसके लिये परिवास देना धार्मिक है; (किन्तु) जिम मागको अनजाने प्रतिच्छन्न किया, उसके लिये पन्दिाम देना अधार्मिक है । अधार्मिक होनेने (परिवाग देना) उनित नहीं, आबुसो ! (यह) भिक्षु एक मासके लिये मा न त्त्व देने लायक है ।' 36 -"० एक मामके याद रहते प्रतिच्छन्न रकया गया हो, दुगरेको न याद रहनेगे। वह मंत्रने दोनों आपत्तियोंके लिये दो मामका परिबास मांगे।०५। परिवास करने बात द्गग बहुश्रुत ० भिक्ष आवे । ०५, आवुसो ! (यह) भिक्षु एक आपत्तिके लिये मा न त्व देने लायक है। 37 ८--"० एक मामको सन्देह न रहने प्रतिच्छन्न रचना गया हो, गरेको मन्देह रहते। वह गंधगे दोनों आपतियोंके लिये दो मामका परिवान माने । ० ' । परिवार करने वात दुगग बहुश्रुत ० भिक्ष आदे। ०६, आवुनो ! (यह) भिक्षु एक आपनिके लिये मानव देने लायक है।" 38 " ६-- १ देखो ऊपर ( २ ) और पृष्ट ३८० ( ५ )। देखो ऊपर ( 3 ) और पृष्ठ : ८०-१ (६)। देवो ऊपर ( ३ ) और पृट ३८१ । "देखो एक ३८१ (८) । 'देवो ऊपर (६) और पृष्ट ३८१ (१.)। देखो ऊपर और पृष्ट ३८१ ( १० ) ।