पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४४०

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! ! २ ३१२।१ ] परिवास-दंड [ ३८१ संघसे दो मासका परिवास माँगता है। संघ ० दो मासका परिवास देता है। परिवास करते वक्त उसे दूसरी आपत्ति याद आती है । ०१ । संघ उसे ० दूसरी आपत्तिके लिये भी दो मासका परिवास देता है। तो भिक्षुओ! उस भिक्षुको तबसे लेकर दो मास तक परिवास करना चाहिये। 25 ७--"यदि भिक्षुओ ! एक भिक्षुने दो संघादिसेसोंकी दो मास तक प्रतिच्छन्न दो आपत्तियाँ की हैं। उसे (उनमेंसे) एकके बारेमें सन्देह नहीं है, दूसरेके बारेमें सन्देह है। ० २ । ० तवसे लेकर दो मास नक परिवास करना चाहिये। 26 ८--"यदि भिक्षुओ! एक भिक्षुने दो संघादिसेसोंकी दो मास तक प्रतिच्छन्न दो आपत्तियाँकी हैं। (उनमेंसे) एकको जानबूझकर प्रतिच्छन्न (=चुप) रक्खी, दूसरीको अनजानसे। ० २ । संघ ० दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास देता है। परिवास करते वक्त दूसरा बहुश्रुत, आगमज़० मीख चाहनेवाला भिक्षु आवे । वह ऐसा पूछे--'आवुसो ! इस भिक्षुने क्या आपत्ति की, किसके लिये यह परि वा स कर रहा है ? वह ऐसा कहे--'आवुस ! इस भिक्षुने ० दो आपत्तियाँ कीं। एकको जानबूझ- कर प्रतिच्छन्न रक्खा, दूसरीको अनजानसे । ० २ । संघने ० दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास दिया है। आवुस ! उन दो आपत्तियोंको इस भिक्षुने किया है उन्हींके लिये यह परिवास कर रहा है।' वह ऐसा कहे-'आवुसो ! जो आपत्ति कि जानकर प्रतिच्छन्न रक्खी गई, उसके लिये परिवास देना धामि क (=न्याय युक्त) है; (किन्तु) जो आपत्ति अनजाने प्रतिच्छन्न रक्खी गई, उसके लिये परिवास देना अ-धार्मिक (=अन्याय) है । अधार्मिक होनेसे (परिवास देना) उचित नहीं, आवुसो! (यह) भिक्षु एक आपत्तिके लिये मानत्त्व देने लायक (मानत्त्वार्ह) है। 27 ९-- "यदि भिक्षओ! ० एक आपत्ति याद रहते प्रतिच्छन्न रक्खी गई, दूसरी न याद रहते। वह संघसे ० दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास माँगता है। संघ ० देता है। परिवास करते वक्त दूसरा बहुश्रुत ० भिक्षु आता है । ०,३ आवसो ! (यह) भिक्षु एक आपत्तिके लिये मा न त्त्व देने लायक है। 28 १०-“यदि भिक्षुओ! ० एक आपत्तिको संदेह न रहते प्रतिच्छन्न रक्खा, दूसरीको संदेहमें। वह संघसे ० दोनों आपत्तियोंके लिये दो मासका परिवास माँगता है । संघ ० देता है। परिवास करते ववत दूसरा बहुश्रुत भिक्षु आता है। ० ३ आवुसो! यह भिक्षु एक आपत्तिके लिये मा न त्त्व देने लायक है।" 29 ख. १--उस समय एक भिक्षुने दो संघादिसेसोंकी दो मास प्रतिच्छन्न दो आपत्तियाँ की थीं। उसको ऐसा हुआ--० मैने ० दो मास प्रतिच्छन्न दो आपत्तियां की हैं। चलूँ संघसे ० एक मास प्रतिच्छन्न एक आपत्निके लिये एक मासका परिवास मांगूं ।' उसने संघसे ० दो मास प्रतिच्छन्न एक आपत्तिके लिये एक मासका परिवास मांगा। संघने उसे ० एक मासका परिवास दे दिया। परिवास करते वक्त उसे लज्जा आई-०४ । चल संघमे में दूसरे मासका भी परिवास माँगू।' उसने भिक्षुओंसे कहा-० । भगवान्ने यह बात कही।-- "नो भिक्षुओ ! नंघ उन भिक्षुको दो मास प्रतिच्छन्न दोनों आपत्तियोंके लिये वाकी दूसरे मासका भी परिवान दे। 30 "और भिक्षुओ! इस प्रकार (परिवास) देना चाहिये-०५। o ४ ५ऊपर (४) की दात यहाँ भी समझो। देखो पृष्ठ ३८० । ऊपर (८) जैसा पाठ । 'देखो ऊपर पृष्ठ ३८० (३) की तरह । 'देखो पृष्ट ३७२-३ ('छ रात वाला मानत्त्व' की जगह 'एक मासका परिवास' रखकर)।