३८४ ] ४-चुल्लवग्ग [ 3521 जानता, रातके परिमाणको जानता है । ० नहीं याद रखता, ० याद रखता है । ० निस्सन्देह होता है, ० सन्देह-युक्त होता है । (३) आपत्तिके परिमाणमें कुछ जानता है कुछ नहीं जानता; रातके परिमाणको जानता है। ० कुछ नहीं याद रखता; ० याद रखता है । ० कुछ सन्देह रखता है; ० मन्देह नहीं रखता। (ऐसेको) परिवास देना चाहिये। भिक्षुओ। इस प्रकार परिवास देना चाहिये ।" 41 परिवास-समाप्त - 144 ३-दुबारा उपसम्पदा लेनेपर पहिलेके बचे परिवास आदि दंड (१) शेष परिवास (१) उस समय एक भिक्षु परिवास करते वक्त भिक्षु वेप छोड़ चला गया। उसने फिर आकर भिक्षुओंसे उपसम्पदा माँगी । भगवान्से यह बात कही ।- "भिक्षुओ ! यदि कोई भिक्षु परिवास करते वक्त भिक्षु वेप छोड़ चला गया हो, और वह फिर आकर भिक्षुओंसे उपसम्पदा माँगे । भिक्षु वेप छोड़ गये के लिये भिक्षुओ ! परिवास नहीं रहता । यदि वह फिर उपसम्पदा लेना चाहे, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये । पहिलेका दिया परिवास ठीक है, जितना परिवास पूरा हो गया, वह (भी) ठीक; बाकी (समय) के लिये परिवाम करना चाहिये । 42 (२)"० परिवास करते वक्त (भिक्षुपन छोड़) श्रामणेर बन जाये । श्रामणेरके लिये भिक्षुओ! परि- वास नहीं रहता। यदि वह फिर उपसम्पदा लेना चाहे, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये ।। 143 (३) "० परिवास करते पागल हो जाये । पागलको ० परिवास नहीं रहता । यदि फिर उसका पागलपन हट जाये, तो उसे वही पहिला परिवास देना चाहिये । ० (४) '० परिवास करते विक्षिप्त हो जाये। विक्षिप्त-चित्तको परिवास नहीं रहता । यदि वह फिर अविक्षिप्त चित्त हो, तो उसे वही पहिला परिवाम देना चाहिये । ०१ +5 (५) '० परिवास करते वे द न ह (=बदहवास) हो जाये । ०° 1 46 (६) "० परिवास करते आपतिक न देखनेमे उ क्षिप्त कर हो जाये । ' 47 '० परिवास करते आपत्ति के प्रतिकार न करनेंगे उक्षिप्तक हो जाये । ' । .18 (८) "० परिवास करते बुरी दृष्टिके न छोड़नेमे उन्क्षिप्तक हो जाये । । +9 (२) मूलसे-प्रतिकपण (९) भिक्षुओं ! कोई भिक्षु मूलमे-प्रतिकर्षणके योग्य हो भिक्षु-वेप छोड़ चला जाये, और वह फिर आकर उपमम्पदा लेना चाहे । भि-वेप छोड़कर चले गयेको मन्लंग-प्रतिकण नही रहा। यदि वह फिर उपमम्पदा लेना चाहे तो उसे बही पग्विाम देना चाहिये । पहिलेका दिया पग्विाम ठीक है, जितना पग्विाम पूरा हो गया वह (भी) टीक है. उन भिक्षुको मलमे प्रतिकरण करना चाहिय। 50 (१०) " श्रामणेर हो जाये, . ISI (११) "० पागल हो जाये 52 (१२) " विक्षिप्त-चिन हो जाये। 152 वेदनट्ट हो जाये। (१४) " आपत्ति न देनेने उन्धिानकर हो जाय । 55 14 " ३ ३ ऊपर (१) जैमा। • देवो महाबग १५ पृष्ठ ३१८ । ऊपर (2) की भांनि।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४४३
दिखावट