सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शुद्ध मूलसे-प्रतिकर्षण BOGIC] [ ३९३ करता है। वह उसी स्थिति (भूमि) में रहते पहिलेकी आपत्तियोंके वीचकी आपत्तियोंको याद करता है। वादवाली आपत्तियोंके बीचकी आपत्तियोंको याद करता है । उसको ऐसा होता है-'मैंने परिमाणवाली० बहुतसी संघादिसेसकी आपत्तियाँ की। ० संघने मुझे० समवधान- परिवास दिया। मैंने परिवास करते बीचमें बहुतसी परिमाणवाली० आपत्तियाँ की । ० संघने अधर्म० वीचकी आपत्तियोंके लिये मूलसे-प्रतिकर्पण किया, अधर्मसे समवधान परिवास दिया। (तब) मैंने 'यह परिवास है'--जानते हुए वीचमें परिमाणवाली और न छिपाई बहुतसी संघादिसेसकी आपत्तियाँ की। सो मुझे उसी भूमिमें रहते पहिलेकी आपत्तियोंके बीचकी आपत्तियाँ याद हैं, वादवाली आपत्तियों के वीचकी आपत्तियाँ याद हैं। चलूं संघसे पहिलेकी आपत्तियोंके वीचकी आपत्तियोंके लिये, और बाद वाली आपत्तियोंके बीचकी आपत्तियोंके लिये भी, धार्मिक- अकोप्य स्थानके योग्य कर्मद्वारा मूल से प्रति कर्षण, धर्मसे समवधान-परिवास, धर्मसे मानत्त्व और धर्मसे आह्वान माँगूं।' वह संघसे० माँगता है। संघ उसे ० देता है। भिक्षुओ! वह भिक्षु उन आपत्तियोंसे शुद्ध है। 1073 (२) "०१ बीचमें बहुतसी परिमाणवाली छिपाई संघादिसेसकी आपत्तियाँ करता है ०} } 1074 (३) "०१ बीचमें बहुतमी परिमाणवाली छिपाई भी, न छिपाई भी ०१ । 1075 (४) "० वीचमें बहुतमी परिमाण-रहित, न छिपाई ०१ । 1076 (५) "०१ वीचमें बहुतसी परिमाण-रहित, छिपाई ०' | 1077 (६) "०१ वीचमें वहुतसी परिमाण-रहित छिपाई भी न छिपाई भी ०° । 1078 (७) "०१ वीचमें बहुतसी परिमाणवाली भी परिमाण-रहित भी छिपाई ०१ । 1079 (८) "०१ वीचमें बहुतसी परिमाणवाली भी परिमाण-रहित भी न छिपाई भी, छिपाई भी०१ ।" 1080 नौ मूलसे-प्रतिकर्षणमें शुद्धियाँ समाप्त समुच्चयक्खन्धक समाप्त ॥३॥ देखो ऊपर (३) । दन स्कन्धकमे आये प्रकरणों का नाम गिनाते वक्त अन्लमें यह भी लिखा है-"ताम्र- पोहोप (लंका) को अनन्वत (-बोट) बनानेवाले महाविहारवामी विभज्यवादी आचार्योका गर्मवी स्थिनिके लिए (यह) पाट है।"