पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४५६

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[ ३९५ १ ४१२।१] स्मृति-विनय (८) अधर्मवादी संघ वहुतसे धर्मवादियोंको समझा. 19 (९) अधर्मवादी संघ धर्मवादी संघको समझावें नौ कृष्णपक्ष समाप्त १ LIO २ ख. (१) धर्मवादी व्यक्ति अधर्मवादी व्यक्तिको समयावें ०१ । इस प्रकार यदि अधिकरण शांत होवे, तो वह धर्मसे, संमुख विनयसे शांत होगा । II (२) धर्मवादी व्यक्ति वहुतसे अधर्मवादियोंको समझावे ०२ 1 1 2 (३) धर्मवादी व्यक्ति अधर्मवादी संघको समझावे ०२ 113 (४) बहुतले धर्मवादी अधर्मवादी व्यक्तिको समझावें ० 1 14 (५) बहुतसे धर्मवादी बहुतसे अधर्मवादियोंको समझा ० 115 (६) बहुतसे अधर्मवादी अधर्मवादी संघको समझावें 116 (७) धर्मवादी संघ अधर्मवादी व्यक्तिको समझावें. (८) धर्मवादी संघ बहुतसे अधर्मवादियोंको समझा-०२ । 18 (९) धर्मवादी संघ अधर्मवादी संघको समझा-०२ नौ शुक्लपक्ष समाप्त 117 119 ६२-स्मृति विनय-आदि छ विनय २-राजगृह (१) स्मृति-विनय व. पूर्व क था---उस समय बुद्ध भगवान् रा ज गृ ह के वेणु व न क ल न्द क नि वा प में विहार करते थे। उस समय आयुप्मान दर्भ मल्ल पुत्र ने जन्मसे सात वर्प(की अवस्था)में अर्हत्त्व प्राप्त किया था; जो कुछ (बुद्धक) श्रावक (=शिष्य) को प्राप्त करना है, सभी उन्हें मिल गया था, और कुछ करनेको न था, न कियेको मिटाना (वाकी) था । तव एकान्तमें स्थित हो विचार-मग्न होते समय आयुप्मान् दर्भ मल्लपुत्रके चित्तमें यह विचार उत्पन्न हुआ--मैंने जन्मने सात वर्ष (की अवस्था) में अर्हत्त्व प्राप्त किया है, जो कुछ श्रावकको प्राप्त करना है, सभी मुझे मिल गया। (अव) और कुछ करनेको नहीं है, न कियेको मिटाना (बाकी) है। मसे संघवी क्या नेवा करनी चाहिये ?' तव आयुप्मान् दर्भ मल्लपुत्रको यह हुआ—'क्यों न मैं संघके गयन-आसनका प्रबंध करें, और भोजनका नियमन (=उद्देश) कम् । नव आयुप्मान् दर्भ (= दब) मल्लपुत्र सायंकाल एकान्त-चिन्तनमे उठ जहाँ भगवान् थे वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादन कर एक ओर बैठे। एक ओर बैठे आयुप्मान् दर्भ मल्लपुत्रने भगवान्से यह कहा- "भने ! आज एकान्तमें विचार-मग्न होते समय मेरे चित्तमें ऐमा विचार उत्पन्न हुआ- मैने जमने सात वर्ष की अवधा) में अर्हन्त्र प्राप्त किया है; ० । क्यों न मैं संघके गयनासनका प्रबंध बरे" देखो पृष्ठ ३९४ (३) । देखो ऊपर (१)।