सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्मृति-विनय ४०२।१] [ ३९७ प्रज्ञापित करते थे—'यह चारपाई (=मंच) है, यह चौकी (=पीठ) है, यह तकिया (=भिसि) है, यह विम्बोहन (-मसनद) है, यह पाखाना है, यह पेशावखाना है, यह पीनेका पानी है, यह इस्तेमाल करनेका (पानी) है, यह कत्तरदंड (=डंडा) है, यह संघका कति क - सन्था न (स्थानीय रवाज) है। अमुक समय प्रवेश करना चाहिये, अमुक समय निकलना चाहिये।' आयुष्मान् दर्भ मल्लपुत्र इस प्रकार उनके लिये शयन-आसन प्रज्ञापित करते थे। उस समय मे त्ति य और भु म्म ज क भिक्षु नये और भाग्यहीन थे। संघके जो खरावसे खराब शयन-आसन (=निवास-स्थान) थे, वह उन्हें मिलते थे, और वैसे ही खरावसे खराव भोजन भी ! उस समय राज गृह के लोग संघको घी, तेल, उत्तरिभंग (=भोजनके बादका खाद्य) =अभिसंस्कार देना चाहते थे; (किन्तु) मे त्ति य और भुम्मजकको सदाका पका कणाजक (=बुरा अन्न) को विलंगक (=विडंग अनाज) के साथ देते थे। वह भोजन समाप्त करनेपर स्थविर भिक्षुओंसे पूछते थे—'आवुसो! तुम्हारे भोजनमें आज क्या था ? तुम्हारे क्या था ?' ोई कोई स्थविर बोलते थे—'आवुसो ! हमारे भोजनमें घी था, तेल था, उत्त रि भंग था।' मे त्ति य भुम्म ज क भिक्षु ऐसा कहते थे--'आवुसो! हमारे (भोजन) में जैसा-तैसा पका विलंगके साथ कणाजक था।' उस समय क ल्या ण भक्ति क गृहपति संघको नित्य चारों प्रकारका भोजन देता था। वह भोजनके समय (स्वयं) पुत्र-स्त्री सहित उपस्थित हो परोसता था--कोई भातके लिये पूछता, कोई नूप (दाल आदि) के लिये पूछता, कोई तेलके लिये पूछता, कोई उत्तरिभंगके लिये पूछता । एक समय क ल्या ण भत्ति क गृहपतिके (घर) दूसरे दिन के भोजनके लिये मे त्ति य भुम्म ज क भिक्षुओंका नाम था। तब कल्याणभक्तिक गृहपति किसी कामसे आराममें गया। (और) वह जहाँ आयुष्मान् दर्भ म ल्ल पुत्र थे, वहाँ. . .जा...अभिवादनकर एक ओर बैठ गया । एक ओर बैठे कल्याण भवितव गृहपतिको आयुष्मान दर्भ मल्लपुत्रने धार्मिक कथा द्वारा. . .समुत्तेजित संप्रहर्षित किया। तव कल्याण-भक्तिक गृहपतिने ० प्रहर्पित हो आयुष्मान दर्भ मल्लपुत्रसे यह कहा- "भन्ते ! किसका हमारे घर कलका भोजन है ?" "गृहपति ! मेत्तिय भुम्मजक भिक्षुओंका...." तब कल्याण-भक्तिक गृहपति असन्तुष्ट हो गया-'कैसे पापभिक्षु (= अभागे भिक्षु) हमारे घर भोजन करेंगे !' (और) घर जा (उसने) दासीको आज्ञा दी- "रे! जो कल भोजन करेंगे, उन्हें कोठरीमें विलंग सहित कणाजक परोसना।" "अच्छा, आर्य!"- -(कह) उस दासीने कल्याण-भक्तिक गृहपतिको उत्तर दिया। नव मे नि य भुम्म ज क भिक्षु-'कल हमारा भोजन कल्याण भक्तिकके गृहपतिके घर बनलाया गया है। कल कल्याण-भवितक गृहपति पुत्र-भार्या सहित उपस्थित हो हमारे लिये (भोजन) परोसेगा। वो भातवे लिये पूटेंगे, कोई सूपके लिये०, कोई तेलके लिये०, (और) कोई उत्तरिभंगके लिये पूछेगे,- (नोच) नी खुशी में मन भरकर नहीं नोये । तब मेनियनुग्मजक भिक्षु पूर्वाह्ण समय पहिनकर पात्र-चीवर ले जहाँ कल्याण भक्तिक गृहपति- का पर था. वहां गये। उन दानीने मेत्तियभुम्मजक भिक्षुओंको दूरने ही आते देखा। देखकर उसने कोठरीमें भानन दिला मनिवमुग्मजब निक्षुओंने यह कहा- "हियभन्ने!" नट मेनिपभुम्मजव निक्षुओंको यह हुआ-"निःनंगय अभी भोजन तैयार न हुआ होगा, जिगालिये हम वोटनमें बैठाये रहे हैं।' तब वह दानी दिलंग माथ कपाजक लाई- 1