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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४५९

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३९८ ] ४-चुल्लबग्ग [ ४६२।१ "भगिनी! हम वंधान (=नित्य) के भोजनवाले हैं।" "जानती हूँ, आर्य लोग बंधानके भोजन वाले हैं; और मुझे गृहपतिने खासतौरसे आजा दी है- 'रे! जो कल भोजन करेंगे उन्हें कोठरीमें विलंग-सहित कणाजक परोसना।' खाइये भन्ते ! तव मे त्ति य भुम्म ज क भिक्षुओंने--'आवुसो ! कल क ल्या ण भक्ति क गृहपति आराममें दर्भ मल्लपुत्रके पास गया था। निःसंशय आवुसो! दर्भ मल्लपुत्रने हमारे प्रति गृहपतिके भीतर दुर्भाव पैदा कर दिया;' (सोच) उसी चित्त-विकारसे मन भरकर नहीं खाया । तब मेत्तियभुम्मजक भिक्षु भोजन करनेके पश्चात् आराममें जा पात्र-चीवर सँभाल बाहर आगमके कोठेमें संघाटी बिछा, चुपचाप, मूक, कंधागिरा, अधोमुख सोचकरते प्रतिभाहीन हो बैठे। तब मे ति या भिक्षुणी जहाँ मेत्तियभुम्मजक भिक्षु थे, वहाँ गई। जाकर मेत्तियभुम्मजक भिक्षुओंसे यह बोली-- "आर्यो ! वन्दना करती हूँ।" ऐसा कहनेपर मेत्तिय भुम्मजक भिक्षु न बोले। दूसरी बार भी ०। तीसरी बार भी मेत्तिया भिक्षुणीने मेत्तिय भुम्मजक भिक्षुओंसे यह कहा-- "आर्यो! वन्दना करती हूँ।" तीसरी बार भी मेत्तिय भुम्मजक भिक्षु नहीं बोले। "क्या मैंने आर्योका अपराध किया? क्यों आर्य मुझसे नहीं बोल रहे हैं ? "क्योंकि भगिनी ! दर्भ मल्लपुत्र द्वारा हमें सताये जाते देखकर भी तू पर्वाह नहीं करती।" "(तो) आर्यो! मैं क्या करूँ ?" "भगिनी! यदि तू चाहे, तो आज ही भगवान् दर्भ मल्लपुत्रको नष्टकर देंगे (=भिक्षु संघसे निकाल देंगे)।" "आर्यो! मैं क्या करूँ? मैं क्या कर सकती हूँ।" "आ, भगिनी ! जहाँ भगवान् हैं, वहाँ जाकर भगवान्से यह कह-- 'भन्ते ! यह योग्य नहीं है, उचित नहीं है । भन्ते ! जो दिशा पहिले ईति-रहित (उपद्रवरहित), भय रहित, निरुपद्रव थी; वह दिशा (आज) सहसा ईति-सहित, भय-सहित, उपद्रव-सहित (हो गई); जहाँ वायु न डोलती थी, वहाँ आँधी (=प्रवात) (आ गई) । पानी जलता मा मालुम पळता है। आर्य दर्भ मल्लपुत्रने मुझे दूपित किया है।" "अच्छा, आर्यो !"-- (कह) मेत्तिया भिक्षुणीने उत्तर दे जहाँ भगवान् थे, वहाँ गई। जाकर भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर. . .खळी हो. . .भगवान्से यह कहा-- "भन्ते ! यह योग्य नहीं है, ० ।" तव भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षु-संघको एकत्रितकर आयुष्मान् दर्भ मल्लपुत्रंग पूछा- "दर्भ ! इस तरहका काम करना तुझे याद है, जैसा कि यह भिक्षणी कहती है ?" "भन्ते ! भगवान् जैसा मुझे जानते हैं।" दूसरी बार भी, भगवान्ने ० पूछा---०। तीसरी बार भी ० पूछा-- "दर्भ! उस तरहका काम करना तुझे याद है, जैमा कि यह भिक्षुणी कहती है ?" "भन्ते ! भगवान् जैसा मुझे जानते हैं।" "दर्भ ! दर्भ (=कुग) ऐसे नही ग्युला करते। यदि तूने किया हो, तो 'किया' कह; यदि तने नहीं किया, तो 'नहीं किया' कह ।” ।