पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४६१

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४०० ४-त्रुल्लवग्ग [४१२।२ (२) अमूढ़-विनय क. पूर्व क था--उस समय गर्ग भिक्षु पागल हो गया था, वह विपर्यस्त (=विक्षिप्त) चित्त हो गया था । उसने पागल, चित्त विपर्यस्त हो बहुतसा श्रमणोंके आचरणके विरुद्ध भापित परिकृन्त (=चुभती वात) काम किया । भिक्षु (लोग) पागल ० हो किये गये बहुतसे श्रमण- विरुद्ध कामोंके लिये गर्ग भिक्षुपर दोषारोपण कर प्रेरित करते थे—“याद करो, आयुष्मान् इस प्रकारकी आपत्तिकी।" वह ऐसा बोलता--"आवुसो! मैं पागल ० गया था, पागल ० हो मैंने बहुतसे श्रमण-विरुद्ध काम किये...। मुझे वह याद नहीं, मैंने मूढ़ (=होशमें न हो) वह (काम) किये।" ऐसा कहनेपर भी चोदित करते ही थे--'याद करो ।' (तब) जो वह अल्पेच्छ भिक्षु थे-० । उन्होंने भगवान्से यह बात कही। "सचमुच भिक्षुओ! ०?" "(हाँ) सचमुच भगवान् !" ० फटकारकर भगवान्ने ० भिक्षुओंको संबोधित किया- "तो भिक्षुओ ! संघ अमूढ़ ( =पागलपनसे छूटा ) होनेसे गर्ग भिक्षुको अमूढविनय ( दे। 24 "और भिक्षुओ! ऐसे देना चाहिये- "या च ना-वह गर्ग भिक्षु संघके पास जा०--' -'मैंने भन्ते ! पागल ० हो बहुत सा श्रमण-विरुद्ध काम किया। मुझे भिक्षु चोदित करते हैं याद करो ० । मैं ऐसा बोलता हूँ--'आवुमो ! मैं पागल ० हो गया था. कहनेपर भी चोदित करते ही हैं--'याद करो०; सो मैं भन्ते ! अमूढ़ हूँ, संघसे अमूढ़-विनय माँगता हूँ।' "दूसरी वार भी -०माँगता हूँ। "तीसरी वार भी-०माँगता हूँ। "तव चतुर समर्थ भिक्षु-संघको सूचित करे-- "क. ज्ञ प्ति--'भन्ते ! संघ मेरी सुने--० । "(१) दूसरी बार भी 'भन्ते! मंघ मेरी सुने-० । "ख (२) 'भन्ते ! संघ मेरी सुने–० । "(३) 'तीसरी बार भी, पूज्यसंघ मेरी सुने-०। "ग. धा र णा-'संघने अमूढ़ होनेसे गर्ग भिक्षुको अमूढ़-विनय दे दिया । संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।' "भिक्षुओ! तीन अमढ़-विनयके दान-अधार्मिक हैं, और यह तीन धार्मिक। "भिक्षुओ! कौनसे तीन अमूढ़-विनयके दान अधार्मिक है ?- "ख. नियम-विरुद्ध अमूढ़-विनय । (१) भिक्षुओ ! यहाँ एक भिक्षुने आपत्ति की होती थी। उसे संघ या बहुतसे व्यक्ति या एक व्यक्ति चोदित करता है-'याद करो, आयुप्मान्ने इस प्रकारकी आपत्ति की।' वह याद होनेपर भी यह कहे आवुमो ! मुझे याद नहीं है कि मैंने इस प्रकार की आपत्तिकी।' उसे संघ यदि अमूढ़-विनय दे; तो यह अमढ़-विनयका दान अधार्मिक है । (२) ०, वह याद होनेपर भी यह कहे-याद है मुझे आवमो ! जैसेकि स्वप्नके बाद (स्वप्न देखनेवालेको स्वप्नकी वात याद आती है) ।' उमे संघ (यदि) अमूढ़-विनय दे, तो यह ० दान अधामिर है। (३) ० वह यह वोले-'बिना पागलपनका (आदमी) पागलपनके समयमें जो करता है, मैने भी वैमा