पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/४८

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नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्वुद्धस्स । ( पातिमोक्ख' ) १-भिक्खु-पातिमोक्ख निदान । १-पाराजिक । २-संघादिसेस । ३-अ-नियत । ४ ४-निस्सग्गिय पाचित्तिय । ५-पाचित्तिय । ६–पाटिदेसनिय । ७-सेखिय । ८-अधिकरण-समथ । $ (निदान) ( एक भिक्षु-) भन्ते ! संघ मेरो ( वात) सुने, यदि संघको पसंद हो (तो) मैं इस नामके आयुष्मानसे विनय पूछू । ३ (चुना जाने वाला भिक्षु-) भन्ते ! संघ मेरो ( बात ) सुने, यदि संघको पसंद हो ( तो ) मैं इस नामके आयुष्मान द्वारा पूछे विनय (=भिक्षु-नियम)का उत्तर दूँ।- सम्मजनी पदोपो च उदकं आसनेन च । उपोसथस्स एतानि पुब्बकरणन्ति वुच्चति ॥ (सम्मार्जनी प्रदीपश्च उदकं वासनेन च । उपोसथस्य एतानि पूर्वकरणमित्युच्यते ॥) ( संघसे ) अवकाश ( माँगकर कहता हूँ)--सम्मज्जनी झाड़ देना ( उपोसथागार को साफ करना ), पदीपो च और दिया जलाना [ (दिन होनेसे-) इस समय सूर्यके प्रकाशके कारण दीपकका काम नहीं है ( कहना चाहिये)], उदकं अासनेन च = और श्रासन (विछाने )के साथ पीने तथा धोनेके लायक जलको रखना, एतानि=संमार्जन करना आदि यह चार कार्य (=व्रत ) संघके एकत्रित होनेसे पहिले किये जानेसे, उपोसथन्स = उपोसथ के, पुब्बकरणन्ति = "पूर्व-करण", वुच्चति = कहे जाते हैं। ' मालकी प्रत्येक कृष्ण चतुर्दशी तथा पूर्णिमाको उस स्थानमें रहनेवाले सभी भिक्षु संघके उपोनथागारमें एकत्रित हो इन पातिमोक्रव ( = प्रातिमोक्ष )के नियमोंकी आवृत्ति करते हैं । २ यहाँ जिस भिक्षुको उस दिन धर्मासनके लिये चुनना हो, उसका नाम लेना चाहिए। ३ संघकी स्वीकृति जान वह भिक्षु संघको प्रणाम कर पाँतीके आरम्भमें रक्खे धर्मासन पर पेठ आगेकी बातोंको कहता है । । प्रस्तावक भिक्षुका यहाँ नाम लेना चाहिये । कृष्ण चतुर्दशी और पूर्णमासी ।